वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

क्या आप जानते हैं वैद्यनाथ मंदिर को 'आरोग्यदाता' क्यों कहा जाता है? जानिए इसका इतिहास, पौराणिक कथाएं, दर्शन विधि और मंदिर तक पहुंचने का मार्ग।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इसे "बाबा बैद्यनाथ" भी कहा जाता है। यह स्थल विशेष रूप से सावन माह में श्रद्धालुओं से भरा रहता है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

पवित्र श्रावण मास में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से सभी दुख दूर होते हैं, जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं और जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन्हीं में से एक है ‘वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग’, जिसे कामना लिंग भी कहा जाता है। यह स्थान न सिर्फ शिव के ज्योतिर्लिंग रूप का प्रतीक है, बल्कि एक शक्तिपीठ भी है। क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहीं पर माता सती का हृदय गिरा था। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ‘चिताभूमि’ भी कहा जाता है और श्रद्धालुओं के बीच यह धाम बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है।

वैद्यनाथ मंदिर कहां है?

वैद्यनाथ मंदिर झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है, जो संथाल परगना प्रमंडल के अंतर्गत आता है। यह मंदिर नगर के मध्य में स्थित है। झारखंड की पवित्र धरती पर स्थित यह धाम भारत के प्रमुख शिवालयों में से एक माना जाता है और द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसे नौवां स्थान प्राप्त है‌। यहां ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्तिपीठ भी होने के कारण इसे ‘हार्दपीठ’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि जैसा कि इस लेख में आपको पहले बताया गया कि यहां पर माता सती का हृदय गिरा था।

वैद्यनाथ मंदिर का इतिहास

वैद्यनाथ मंदिर के इतिहास की बात करें तो ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार सातवीं शताब्दी में कई शैवमतावलम्बी राजाओं ने देवघर आकर कामना लिंग की पूजा की थी। मंदिर की स्थापना से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारी कई शिलालेखों और पुरातन प्रमाणों से प्राप्त होती है। बैद्यनाथ मंदिर के पूर्वी द्वार पर ब्राम्ही लिपि में अंकित कई शिलालेख लगे हुए हैं, जिनमें मंदार पर्वत और राजा आदित्य सेन का उल्लेख मिलता है।

इतिहासकारों ने भी मंदार पर्वत के शिलालेखों का उल्लेख किया है। प्राचीन शिलालेखों के अनुसार, शक संवत 1517 में पूरण राजा ने सर्वकामप्रदम शिव मंदिर का निर्माण करा कर उसे एक ब्राह्मण को दान किया था। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पूर्व बनाया गया था। किंतु राजा आदित्य सेन के उल्लेख और अन्य प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि इस मंदिर की स्थापना हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी है।

इतिहास यह भी बताता है कि यह मंदिर कभी दशनामी सन्यासियों और गोरखनाथ पंथी साधुओं के अधिकार क्षेत्र में था। नाथपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण दशनामी साधु देवघर छोड़कर चले गए थे। मंदिर के पश्चिमी हिस्से में आज भी स्थित ‘नाथ बाड़ी’ इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि करता है।

वैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा रावण और भगवान शिव के बीच की एक अद्भुत घटना से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था और उसने एक-एक करके अपने नौ सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिए। जब रावण दसवां सर काटने ही वाला था, तब भगवान शिव प्रकट हुए और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा।

रावण ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वह उसके साथ लंका चलें और वहां स्थापित हो जाएं। शिव जी ने उसकी बात मान ली, लेकिन एक शर्त रखी। उन्होंने कहा यदि रावण उन्हें रास्ते में कहीं भी जमीन पर रखेगा, तो वह वही स्थिर हो जाएंगे। रावण ने यह शर्त स्वीकार कर ली और शिवलिंग को कंधे पर रखकर लंका की ओर प्रस्थान किया।

यात्रा के दौरान रावण को लघुशंका लगी और उसने एक अहीर यानी ग्वाले से शिवलिंग को थोड़ी देर पकड़ने को कहा। भगवान शिव की माया से शिवलिंग भारी होता गया और अहीर से संभालते नहीं बना। अतः थक हार कर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और मारे डर के वहां से भाग गया। जब रावण लौटा तो शिवलिंग को भूमि पर रखा देख क्रोधित हुआ और उसे उठाने के बहुत प्रयास किए, लेकिन असफल रहा। अंततः उसने शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया और निराश होकर लौट गया। तब से ही भगवान शिव इस स्थान पर वैद्यनाथ के रूप में विराजमान हो गए, साथ ही रावण के अंगूठे का चिन्ह आज भी शिवलिंग पर मौजूद है।

मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया

बैद्यनाथ मंदिर हर दिन सुबह 4:00 बजे खुलता है और रात 10:00 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान मंदिर में आरती, पूजन, श्रृंगार और जलाभिषेक होते हैं। दोपहर 3:30 बजे से शाम 6:00 तक मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है, लेकिन भक्त मंदिर परिसर में रह सकते हैं। जो भक्त गर्भगृह में जाकर शिवलिंग का पास से दर्शन करना चाहते हैं, उन्हें लाइन में लगना पड़ता है।

श्रावण मास में यहां बहुत भीड़ होती है, खासकर सोमवार को। उस समय कतारें कई किलोमीटर लंबी हो जाती हैं और लाइन में खड़े होकर दर्शन करने में 1 से 2 घंटे तक का समय लग सकता है। समय बचाने के लिए मंदिर समिति ने ₹600 की VIP टिकट की सुविधा दी है, जिससे सीधे गर्भगृह में जल्दी दर्शन किए जा सकते हैं।

श्रावण में यह धाम एक बड़े धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता है। इस दौरान दूर-दूर से कांवड़िये सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर लगभग 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं।

वैद्यनाथ कैसे पहुंचें? (नजदीकी रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, सड़क मार्ग द्वारा यात्रा)

हवाई मार्ग द्वारा

हवाई यात्रियों के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा देवघर एयरपोर्ट है, जो मंदिर से मात्र 5.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे अब बाबा बैद्यनाथ एयरपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा काजी नज़रुल इस्लाम एयरपोर्ट (111 किलोमीटर) और रांची एयरपोर्ट (191) भी एक विकल्प हो सकते हैं।

रेल मार्ग द्वारा यात्रा

रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए जसीडीह जंक्शन सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित है। इसके अलावा देवघर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर और बैद्यनाथ धाम रेलवे स्टेशन मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है‌। यह स्टेशन देश के विभिन्न भागों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा

देवघर शहर सड़क मार्ग से झारखंड तथा आसपास के राज्यों से भली भांति जुड़ा हुआ है। पटना, गया, रांची जैसे प्रमुख शहरों से यहां के लिए सरकारी और निजी बसें नियमित रूप से चलती हैं। निकटतम बस अड्डा देवघर बस स्टैंड है, जो मंदिर से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह थी वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई विशेष जानकारी। अगर आप भगवान शिव के सच्चे भक्त हैं, तो एक बार समय निकालकर इस पवित्र स्थान की यात्रा जरूर करें। कहते हैं, यहां सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना को शिव जी स्वीकार करते हैं, और भक्त पर अपनी कृपा सदा बनाए रखते हैं। ‘श्री मंदिर’ कामना करता है कि भगवान वैद्यनाथ आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करें और जीवन में सुख-शांति बनाए रखें।

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Published by Sri Mandir·July 2, 2025

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