त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

क्या आप जानते हैं त्र्यंबकेश्वर मंदिर की विशेषता? जानिए इसका पौराणिक इतिहास, दर्शन की विधि, धार्मिक मान्यता और वहां कैसे पहुंचें

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नाशिक जिले में स्थित है। यह गोदावरी नदी के उद्गम स्थान के पास स्थित है और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां शिव के साथ ब्रह्मा और विष्णु के लिंग रूप की भी पूजा होती है।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: गोदावरी के उद्गम पर शिव का दिव्य निवास

महाराष्ट्र की हरी-भरी सह्याद्रि पहाड़ियों के आगोश में, जहाँ पवित्र गोदावरी नदी अपनी यात्रा का आरंभ करती है, वहीं विराजमान है त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और इसे भगवान शिव का वह पावन धाम माना जाता है जहाँ स्वयं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) एक लिंग में समाहित हैं। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, शांति और आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

नासिक के करीब स्थित यह प्राचीन स्थल, प्रकृति की शांत सुंदरता और गहन आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है, जहाँ की हवा में ही एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है। त्र्यंबकेश्वर धाम की यात्रा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि एक आत्मा को शुद्ध करने वाली यात्रा है जो हर भक्त के हृदय में अमिट छाप छोड़ जाती है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर कहाँ है?

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में त्र्यंबक नामक कस्बे में स्थित है। यह नासिक शहर से लगभग 28 किलोमीटर पश्चिम में, सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित है। यह स्थान इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहीं से दक्षिण भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक, गोदावरी नदी का उद्गम होता है। मंदिर परिसर में ही एक कुंड है जिसे कुशावर्त कुंड कहा जाता है, जिसे गोदावरी का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास

त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और यह कई सदियों से भक्ति का केंद्र रहा है।

पौराणिक मान्यता: मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग अनादि काल से स्थापित है। इसकी उत्पत्ति रामायण काल से भी जुड़ी हुई है, जहाँ कुछ कथाएँ ऋषि गौतम और गोदावरी नदी के अवतरण से इसे जोड़ती हैं। पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार: वर्तमान मंदिर के निर्माण से पहले भी यहाँ एक प्राचीन मंदिर मौजूद था। कई ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण कई शासकों द्वारा करवाया गया था। पेशवा काल का निर्माण: वर्तमान में खड़ा भव्य मंदिर 18वीं शताब्दी में मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव (नानासाहेब पेशवा) द्वारा बनवाया गया था। उन्होंने इस मंदिर के निर्माण पर उस समय की एक बड़ी राशि (लगभग 16 लाख रुपये) खर्च की थी। पेशवा नानासाहेब ने यह मंदिर एक पुराने, जर्जर हो चुके मंदिर के स्थान पर बनवाया था। मंदिर की वास्तुकला हेमाडपंती शैली में निर्मित है, जो इसकी भव्यता और शिल्प कौशल को दर्शाती है। सिंहस्थ कुंभ मेला: त्र्यंबकेश्वर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह कुंभ मेले के चार स्थलों में से एक है (अन्य हरिद्वार, प्रयागराज और उज्जैन हैं)। यहाँ हर 12 साल में सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है, जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है। लाखों श्रद्धालु इस दौरान गोदावरी के पवित्र जल में डुबकी लगाने आते हैं।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इसकी दिव्यता और महत्व को दर्शाती हैं:

गौतम ऋषि और गोदावरी का अवतरण: सबसे प्रमुख कथा ऋषि गौतम से जुड़ी है। माना जाता है कि एक बार, कुछ ईर्ष्यालु ऋषि-मुनियों ने ऋषि गौतम पर गोहत्या का आरोप लगाया। गौतम ऋषि ने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने गंगा (जो यहाँ गोदावरी के नाम से जानी जाती हैं) को पृथ्वी पर अवतरित होने का वरदान दिया। गोदावरी नदी ब्रह्मगिरि पर्वत से प्रकट हुई और गौतम ऋषि ने इसी नदी के जल से स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित किया। चूंकि शिवजी ने गंगा को अवतरित किया था, इसलिए वे यहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। त्रिदेव का स्वरूप: एक अन्य कथा के अनुसार, ब्रह्मगिरि पर्वत पर ऋषि गौतम की तपस्या के दौरान, देवताओं ने उन्हें यह वरदान दिया कि यहीं पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) एक लिंग में समाहित होंगे। इसीलिए त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में तीन छोटे लिंग हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह एक अनूठी विशेषता है जो इसे अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग करती है। नागों का महत्व: इस क्षेत्र में नागों का भी विशेष महत्व है, और कई लोग यहाँ कालसर्प दोष निवारण पूजा करवाने आते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के गले में नाग विराजमान रहते हैं, और इस क्षेत्र का नागों से विशेष संबंध है।

मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया

त्र्यंबकेश्वर मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है:

कपाट खुलने का समय: मंदिर के कपाट आमतौर पर सुबह 5:30 बजे से रात 9:00 बजे तक खुले रहते हैं। हालांकि, विशेष त्योहारों या दिनों में समय में बदलाव हो सकता है। लंबी कतारें: खासकर सोमवार, शिवरात्रि, श्रावण मास और कुंभ मेले के दौरान दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लगती हैं। गर्भगृह में प्रवेश: त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में तीन छोटे लिंग होते हैं। भक्त गर्भगृह में प्रवेश कर इन तीनों लिंगों के दर्शन कर सकते हैं। गर्भगृह छोटा होता है, और भीड़ होने पर ज्यादा देर रुकना संभव नहीं होता। अभिषेक और पूजा: भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, फूल आदि अर्पित कर सकते हैं। मंदिर में विशेष पूजाएँ और रुद्राभिषेक भी करवाए जा सकते हैं, जिसके लिए पहले से बुकिंग करनी पड़ सकती है। कुशावर्त कुंड: मंदिर के पास ही कुशावर्त कुंड है, जहाँ भक्त गोदावरी के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।

त्र्यंबकेश्वर कैसे पहुँचें?

त्र्यंबकेश्वर तक पहुँचना अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि यह नासिक जैसे प्रमुख शहर के करीब स्थित है।

नजदीकी रेलवे स्टेशन

त्र्यंबकेश्वर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन नासिक रोड है, जो लगभग 40 किलोमीटर दूर है। नासिक रोड से त्र्यंबकेश्वर के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और स्थानीय बसें आसानी से उपलब्ध हैं। यह स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

नजदीकी हवाई अड्डा

  • नासिक हवाई अड्डा:यह त्र्यंबकेश्वर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यह हवाई अड्डा कुछ प्रमुख भारतीय शहरों (जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु) से सीधी उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है।
  • मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भी त्र्यंबकेश्वर पहुंचा जा सकता है, जो लगभग 200 किलोमीटर दूर है।

सड़क मार्ग

  • त्र्यंबकेश्वर महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नासिक से नियमित सरकारी और निजी बसें त्र्यंबकेश्वर के लिए उपलब्ध हैं। टैक्सी और निजी वाहन भी किराए पर लिए जा सकते हैं।
  • मुंबई, पुणे, और शिरडी से नियमित बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।

निष्कर्ष

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह शक्ति केंद्र है जहां श्रद्धा, तपस्या और आत्मिक शांति का साक्षात्कार होता है। शिव के त्रिनेत्र स्वरूप की अनुभूति और गोदावरी की निर्मल धारा यहां आने वाले हर भक्त को आंतरिक शुद्धता का अनुभव कराती है। एक बार यहां आकर हर कोई यही कहता है—"हर हर महादेव!"

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Published by Sri Mandir·July 3, 2025

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