विश्रवा ऋषि

विश्रवा ऋषि

जानें इनके जन्म का रहस्य


विश्रवा ऋषि कौन थे? (Who was Vishrava Rishi?)

हिंदू धर्म में कई महान ऋषि मुनियों के बारे में बताया गया है। ऐसे ही एक महान ऋषि थे पुलस्त्य। इन्हें ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में जाना जाता है। पुलस्त्य के पुत्र थे विश्रवा ऋषि। विश्रवा भी अपने पिता के समान वेदविद् और धर्मात्मा थे। इनकी माता का नाम हविर्भुवा था। रामायण के प्रमुख पात्र रावण विश्रवा ऋषि के ही पुत्र थे। विश्रवा ऋषि का विवाह महामुनि भरद्वाज की पुत्री इड़विड़ा से हुआ था, जिससे उन्हें वैश्रवण नाम का पुत्र हुआ। वैश्रवण का ही एक नाम कुबेर है। विश्रवा ऋषि की एक अन्य पत्नी थी कैकसी, जो कि राक्षस कुल की थी। कैकसी के गर्भ से ही रावण, कुंभकर्ण और विभीषण का जन्म हुआ।

विश्रवा ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Vishrava Rishi)

पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र पुलस्त्य बड़े ही तेजस्वी और गुणवान थे। एक समय की बात है, पुलस्त्य महगिरि पर तपस्या करने गए थे। वह स्थान अत्यंत रमणीक था, इसलिए ऋषियों, नागों, राजर्षियों आदि की कन्याएं वहां खेलने आती थीं। जिससे पुलस्त्य जी की तपस्या में विघ्न पड़ता था। उन्होंने कन्याओं से वहां आने से मना किया, जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने श्राप दे दिया कि अब जो भी कन्या मुझे दिखाई देगी, वह गर्भवती हो जाएगी। सभी कन्याओं ने श्राप के डर से वहां जाना बंद कर दिया, लेकिन श्राप की बात से अनजान राजर्षि तृणबिन्दु की पुत्री पुलस्त्य आश्रम में जा पहुंची। जहां महर्षि की दृष्टि पड़ते ही वह गर्भवती हो गई। तृणबिन्दु को जब इसकी खबर हुई तो उन्होंने अपनी कन्या हविर्भुवा का विवाह पुलस्त्य जी से करवा दिया। इस प्रकार हविर्भुवा ने विश्रवा ऋषि को जन्म दिया।

वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के अनुसार, प्राचीन काल में माली, सुमाली और मालयवान नाम के 3 क्रूर दैत्य हुए। उन्होंने कठोर तपस्या के बल पर ब्रह्मा जी से बलशाली होने का वरदान प्राप्त किया था। दैत्यों के अत्याचार से परेशान सभी देवतागण भगवान विष्णु जी की शरण में गए। विष्णु जी ने देवताओं को निश्चित होने का आश्वासन दिया। दैत्यों को जब इस बात का पता चला तो वे भगवान विष्णु के डर से पाताल लोक में जाकर छिप गए। कई वर्षों बाद दैत्य सुमाली पृथ्वी लोक पर घूमने आया, जहां उसने कुबेर को देखा। कुबेर को देखते ही उसके मन में देवताओं को हराने का विचार आया, जिसके बाद उसने अपनी बेटी कैकसी को तपस्या में लीन विश्रवा ऋषि के पास भेज दिया। सुमाली की मंशा थी कि कैकसी और विश्रवा के विवाह के बाद एक शक्तिशाली पुत्र जन्म ले, जो कि सभी देवताओं का नाश कर दे।

कथा के अनुसार, कैकसी जब विश्रवा ऋषि के पास आई तब तेज आंधी और बारिश होने लगी। इस दौरान कैकसी विश्रवा ऋषि को रिझाने की कोशिश करने लगी। कैकसी ने ऋषि के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। विश्रवा जी के बार बार मना करने के बावजूद वह नहीं मानी। आखिरकार विश्रवा ऋषि ने कैकसी के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्होंने कैकसी को यह भी बताया कि उनका पहला पुत्र दैत्य प्रवृत्ति का होगा, क्योंकि वह अशुभ समय में उनके पास आई हैं। यह सुनकर कैकसी परेशान हो उठीं, उसने कहा ऋषि मुझ पर कुछ तो कृपा करें। इस पर विश्रवा ऋषि ने कहा आपका तीसरा पुत्र मुझ जैसा धर्मात्मा होगा।

कई दिनों बाद कैकसी ने एक बालक को जन्म दिया, जिसका रंग काला और आकार दूसरे शिशुओं की तुलना में बड़ा था। इस बालक का नाम विश्रवा जी ने दशग्रीव रखा। यही दशग्रीव आगे चलकर रावण कहलाया, जिसका वध प्रभु श्री राम के हाथों हुआ था। रावण के बाद कैकसी के गर्भ से कुंभकरण ने जन्म लिया। अंत में कैकसी के तीसरे पुत्र विभीषण ने जन्म लिया, जो कि आचरण से पूरी तरह अपने पिता पर गया।

विश्रवा ऋषि के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Vishrava Rishi)

विश्रवा अपने पिता महर्षि पुलस्त्य की तरह वेदों के विद्वान, सत्यवादी और धर्म कर्म का पालन करने वाले थे। उनका विवाह सबसे पहले महामुनि भरद्वाज की पुत्री इड़विड़ा के साथ हुआ, जिससे उन्हें वैश्रवण नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई। वैश्रवण का ही एक नाम कुबेर है। कुबेर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था, जिसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान स्वरूप उत्तर दिशा का स्वामी व धनाध्यक्ष बनाया था। साथ ही मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान भी दिया था।

कुबेर राजाओं के अधिपति व धन के स्वामी हैं। वे देवताओं के धनाध्यक्ष के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए इन्हें राजाधिराज भी कहा जाता है। गंधमादन पर्वत पर स्थित संपत्ति का चौथा भाग कुबेर जी के ही नियंत्रण में है। उसमें से 16वां भाग ही मानवों को दिया गया है।

विश्रवा ऋषि से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Vishrava Rishi)

विश्रवा ऋषि का जन्म महर्षि पुलस्त्य जी के क्रोध में आकर दिए श्राप के द्वारा हुआ था। कहते हैं महर्षि ने तपस्या के बीच राजर्षि तृणबिन्दु की पुत्री हविर्भुवा को देख लिया था, जिसके बाद वह गर्भवती हो गईं और विश्रवा जी का जन्म हुआ।

कथाओं के अनुसार, लंका ​का निर्माण भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए करवाया था। जिसका गृह प्रवेश कराने के लिए ऋषि विश्रवा को निमंत्रण दिया गया। गृह प्रवेश में अपने ​पति के साथ कैकसी भी गई थी। यज्ञ संपन्न होने के बाद जब भगवान शिव ने विश्रवा जी से दान में कुछ मांगने के लिए कहा तो चालाक राक्षस कन्या कैकसी ने विश्रवा को लंका मांगने के लिए कहा। इससे क्रोधित होकर माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा व उनकी पत्नी कैकसी को श्राप देते हुए कहा कि आज तुमने मेरे सपने की जिस सोने की लंका को मांगा है वही लंका एक दिन तुम्हारे वंश का नाश कर ​देगी। जिसके बाद विश्रवा जी ने लंका को अपने बेटे कुबेर को सौंप दिया। जिसे बाद में रावण ने अपने ही भाई से इसे छीन लिया था।

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