पितृ पक्ष की पूजा विधि पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का महत्वपूर्ण माध्यम है। जानें श्राद्ध, तर्पण और दान की संपूर्ण विधि।
पितृ पक्ष में पूजा विधि का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी समय पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित किए जाते हैं। इस दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं, फिर तिल, कुशा, जल और चावल से तर्पण किया जाता है। पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं और ब्राह्मणों को भोजन तथा दक्षिणा दी जाती है। माना जाता है कि इस विधि से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार को सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इस लेख में जानिए पितृ पक्ष पूजा विधि के महत्व और उससे जुड़े खास नियम।
पितृ पक्ष पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए विशेष महत्वपूर्ण माना गया है, जो भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। इस पूरे पक्ष में श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस समय हमारे पितरों की आत्माएं पृथ्वी लोक पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण व अन्न की अपेक्षा करती हैं। जो लोग श्रद्धा से यह अनुष्ठान करते हैं, उन्हें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, वहीं इसे न करने पर पितरों की अप्रसन्नता का भी भय रहता है।
पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण का सबसे उचित समय दोपहर का मध्य काल माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह स्नान और संकल्प करने के बाद, सूर्य मध्य आकाश में आने पर यानी मध्याह्न के समय तर्पण व पिंडदान करना सबसे श्रेष्ठ होता है। इस दौरान सूर्य की ऊर्जा और वातावरण की पवित्रता से पितरों को अर्पित की गई वस्तुएं सीधा उन तक पहुंचती हैं।
तर्पण और पिंडदान हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए, क्योंकि यह दिशा पितरों की मानी गई है। अगर तर्पण नदी के तट पर किया जाए तो यह और भी शुभ फलदायी माना जाता है।
पितृ पक्ष पूजा शुरू करने से पहले कुछ वस्तुओं की व्यवस्था करना आवश्यक है।
पूजा से पहले स्नान करें, शुद्ध वस्त्र धारण करें और आसन पर बैठकर आचमन कर स्वयं को पवित्र बनाएं। इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए शिखा बांधें, तिलक लगाएं और संकल्प लें कि आप अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए यह तर्पण व पिंडदान कर रहे हैं।
पितृ पक्ष में प्रतिदिन पवित्र नदी में स्नान करके तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण करना चाहिए। तर्पण या पिंडदान के समय सफेद वस्त्र पहनें और यह क्रिया दोपहर के समय करें।
तर्पण के बाद आसन पर बैठकर ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ गोविन्दाय नमः मंत्र बोलते हुए तीन बार आचमन करें।
आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़कें। इसके बाद गायत्री मंत्र का उच्चारण करके शिखा बांधें, तिलक लगाएं और कुशा की पवित्री (पैंती) अनामिका उंगली में पहनें।
हाथ में जल, सुपारी, सिक्का और फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें। संकल्प करते समय अपने नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए कहें: “अथ श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।”
थाली में जल, कच्चा दूध और गुलाब की पंखुड़ियां डालें। हाथ में अक्षत लेकर पहले देवताओं और ऋषियों का आह्वान करें। पूर्व मुख करके कुशा के अग्रभाग को पूर्व दिशा की ओर रखें और दाहिने हाथ की अंगुलियों से जल अर्पित करें।
अब उत्तर मुख करके जनेऊ को माला की तरह पहनें और पालथी लगाकर बैठें। दोनों हथेलियों के बीच जल लेकर दिव्य मनुष्य को अर्पित करें। उसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे लाएं, थाली में काले तिल डालें और इसे हाथ में लेकर मंत्र पढ़ें: “ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमं ग्रहन्तु जलांजलिम।” फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच से जल अर्पित करें।
अपने गोत्र और पिता का नाम लेकर कहें: “गोत्रे अस्मत् पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम् गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नमः।” इसी प्रकार तीन पीढ़ियों के पितरों का नाम लेकर जल अर्पित करें। यदि पितरों के नाम याद न हों, तो रूद्र, विष्णु और ब्रह्मा का नाम लेकर तर्पण किया जा सकता है।
तर्पण के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और कंडे पर गुड़-घी की धूप दें।
पिंडदान के लिए चावल को पकाकर उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाकर गोल पिंड बनाए जाते हैं। दाहिने कंधे पर जनेऊ पहनकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पिंडों को पितरों को अर्पित करें। पिंड अर्पित करते समय मंत्र का उच्चारण करें: “इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्यः स्वधा।” इसके बाद पिंडों को नदी में प्रवाहित कर दें।
पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म करें, जिसमें पांच प्रकार के जीवों को भोजन अर्पित किया जाता है: गाय को गोबलि, कुत्ते को श्वानबलि, कौवे को काकबलि, देवताओं को देवबलि और चींटी को भूतबलि।
अंत में पितरों से श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें और मंत्र पढ़ें: “पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। सर्व पितृभ्यो श्रद्धया नमो नमः।”
ये थी पितृ पक्ष पूजा विधि के बारे में विशेष जानकारी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते हैं और वंशजों को समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में श्रद्धा और नियमपूर्वक पितरों का श्राद्ध करना हर गृहस्थ का परम कर्तव्य माना गया है।
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