क्या आप जानते हैं पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जाते हैं? जानें तर्पण, पिंडदान, दान और श्राद्ध के नियम और लाभ।
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति, तृप्ति और मोक्ष के लिए श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि ऐसे करने से पितर लोक से उतरकर अपने वंशजों के पास आते हैं। यदि हम इस दौरान सही उपायों से उनके प्रति श्रद्धा, दान, तर्पण, पिंडदान आदि विधानों का पालन करते हैं, तो उनकी प्रसन्नता से मन, परिवार और जीवन में शुभ फल, बाधा का नाश, आय में वृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने वाले कुछ प्रमुख उपाय जिन्हें अपनाकर पितृदोष से मुक्ति, पूर्वजों की कृपा और जीवन की समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। इसके अलावा पितृों का आशीवार्द प्राप्त होकर जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
- श्रद्धा‑पूर्वक तर्पण: पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण पितृ पक्ष के सबसे मूलभूत और प्रभावशाली कर्मकांड हैं। स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण के पश्चात, नदी तट, पवित्र जलाशय या अपने घर में दक्षिण की ओर मुख करके जल, काले तिल, जौ, कुश, अक्षत आदि मिलाकर तर्पण किया जाता है। यह कर्म पितरों की आत्मा को तृप्त करता है और उनका आशीर्वाद पाने का माध्यम बनता है।
- पिंडदान करनाः पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष में चावल, तिल एवं घी से बने पिंडों (पिंडास) का महत्व भी अमूल्य है। यह पिंड पितरों को भोजन एवं शरीर रूपक रूप में प्रस्तुत करता है। पुराणों के अनुसार, पिंडदान पितृऋण का प्रायश्चित है और इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है। इसके अलावा ॐ पितृदेवताभ्यो स्वाहा’ जैसे मंत्रों का जाप करने से विधि और प्रभाव दोनों में वृद्धि होती है।
- पंचबली और अन्य जीवों को अन्न‑दान: पितृ पक्ष में पितृ देवों की प्रसन्नता के लिए पंचबलीअर्थात् पशुओं देव, गाय, कुत्ता, कौवा और पीपल वृक्ष को अन्न एवं जल अर्पित करना अत्यंत फलदायी समझा जाता है। इसके साथ ही, चींटियों, मछलियों और कंबलाहार प्राणी (जैसे मूंगफली, दाल आदि) को भी दान करना बहुत शुभ माना जाता है। यह दान न केवल पितरों को संतुष्ट करता है, बल्कि सामाजिक और पारितोषिक पुण्य भी अर्जित होता है
- दान-पुण्य: पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष में शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में दस प्रकार के दान अत्यधिक पुण्यदायी माने गए हैं। इन वस्तुओं में शामिल है जूते-चप्पल, वस्त्र, छाता, काला तिल, घी, गुड़, धान्य, नमक, चांदी-स्वर्ण, और गौ-भूमि। यदि सभी दान संभव न हो, तो केवल आटा, नमक, गुड़, घी, और शक्कर का दान भी पर्याप्त माना जाता है। यह दान पूर्वजों की श्रद्धापूर्वक स्मृति को सम्मानित करने और पितृ दोष निवारण के मार्ग खोलने का काम करता है।
- ब्राह्मण भोजनः पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन कराना की भी विशेष परंपरा है। ब्राह्मणों को विधिपूर्वक भोजन कराकर उनकी सेवा करना, फिर उन्हें दक्षिणा देना यह पितरों को अनुयायी रूप से प्रसन्न करता है। ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। इसलिए उनके प्रति दान और आदर से पितरों तक श्रद्धा पहुँचती है और उनको सुखमय जीवन का आशीष प्राप्त होता है।
- दीपक जलानाः पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन पितरों के नाम पर दीपक जलाना एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय है। आमतौर पर दक्षिण दिशा में काले तिल के साथ 2, 5, 11 या 16 दीये जलाए जाते हैं। इन दीयों को पीपल, तुलसी या घर के मंदिर में भी रखा जा सकता है। यह प्रकाश पितरों को मार्ग-प्रकाश प्रदान करता है और शुभ ऊर्जा का संचार करता है
- गीता-पाठ, पितृसुक्त और मंत्रोच्चारण: पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृसुक्त और श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ पितरों की आत्मा को मार्गदर्शन देने एवं मोक्ष प्राप्ति में सहायक है। 16 दिनों तक गीता पाठ करने से श्रद्धा में वृद्धि होती है और पितरों की प्रसन्नता सुनिश्चित होती है। साथ ही, कई पवित्र मंत्रों का जप भी अत्यंत फलदायी माना गया है।
- सुगंधित धूप‑आहुति और मंत्रजपः पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्षश्र में गुड़-घी का मिश्रित सुगंधित धूप जलाना तथा 'ॐ पितृदेवताभ्यो नमः' मंत्र का जाप करते हुए आहुति देना, पितरों की आत्मा को अत्यधिक तृप्ति प्रदान करता है। यह संपूर्ण विधि श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है, जो पितरों को दिव्य आनंद और शांति की ओर अग्रसर करता है।
- पितृ‑संबंधित देवताओं की पूजाः पितृ पश्र में पितरों को प्रसन्न करने के लिए सर्वपितृ अमावस्या पितृ पक्ष के दौरान यमराज, चित्रगुप्त, अश्विनी कुमार और अन्य पितृ देवों के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है। यह एक अच्छा उपाय माना जाता है। सर्वपितृ अमावस्या (महालया अमावस्या) पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे पवित्र दिन होता है, जब और्ध्वदैहिक संस्कार, पिंडदान, तर्पण आदि कर्मों द्वारा पितृ दोष का प्रायश्चित किया जाता है और सभी पूर्वजों को सामूहिक श्राद्ध करने का अवसर मिलता है।
पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है। यह हमारी आत्मिक परंपरा, पूर्वजों के प्रति दायित्व, और जीवन की जागरूकता का पवित्र माध्यम है। यदि हम बताए गए उपायों श्रद्धा-पूर्वक तर्पण, पिंडदान, पंचबली, प्रकार के दान, ब्राह्मण भोजन, दीपक जलाना, पाठ‑जप, सुगंधित धूप‑आहुति और पितृ देवों की पूजा को पूरे मन और श्रद्धा के साथ अपनाते हैं, तो पितरों का आशीर्वाद हमारे जीवन को सुख, शांति, मोक्ष और समृद्धि से भर देता है।