पितृ पक्ष में कन्याओं को भोजन
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पितृ पक्ष में कन्याओं को भोजन

श्राद्ध पक्ष में कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा क्यों है? जानें इसके धार्मिक महत्व, पौराणिक कारण और पितृ तृप्ति में इसका योगदान।

पितृ पक्ष में कन्या भोजन कराने के बारे में

पितृ पक्ष में कन्या भोजन कराना एक पुण्य कार्य माना गया है। मान्यता है कि कन्याओं को भोजन कराने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन श्रद्धा से कन्याओं को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा देकर सम्मानित किया जाता है। इससे पितृ दोष का निवारण होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस लेख में जानिए पितृ पक्ष में कन्या भोजन का महत्व और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं।

पितृ पक्ष में कन्याओं को भोजन कराने का महत्व

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) का विशेष महत्व होता है। इस दौरान अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। इसी कड़ी में कन्याओं को भोजन कराना भी बहुत शुभ और फलदायी माना गया है।

  • पितृ पक्ष में कौवे को भोजन कराने से माना जाता है कि पितृ तृप्त होते हैं, क्योंकि कौवे को 'पितृ दूत' कहा जाता है।
  • यह अवधि पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए की जाती है, जिसमें श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान शामिल होते हैं।
  • कौवे यमराज का प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए उन्हें भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • पितृ पक्ष में कौवे, गाय, कुत्ते और चींटियों को भोजन कराने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है।

कन्या भोजन कराने की विधि

कन्याएं माँ दुर्गा और देवी स्वरूप मानी जाती हैं, इसलिए उनके भोजन से पितरों की तृप्ति होती है। पितृ पक्ष में कन्याओं को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी और शुभ माना गया है। यह कार्य विधि-विधान से करने पर पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।

उपयुक्त दिन का चयन

  • पितृ पक्ष के किसी भी दिन कन्याओं को भोजन कराया जा सकता है। आमतौर पर अष्टमी, नवमी या अमावस्या को कन्या भोजन अधिक फलदायी माना गया है।

कन्याओं का आमंत्रण

  • 5, 7, 9 या 11 कन्याओं को आमंत्रित करना शुभ माना जाता है। उनकी आयु 2 वर्ष से लेकर 10–12 वर्ष तक होनी चाहिए।

भोजन की तैयारी

  • भोजन सात्विक और घर पर बना हुआ होना चाहिए। सामान्यतः पूरी, सब्ज़ी, दाल, चावल, खीर/हलवा, फल आदि परोसे जाते हैं। भोजन को शुद्ध बर्तनों में परोसा जाता है।

पूजन और सत्कार

  • भोजन कराने से पहले कन्याओं के चरण धोकर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। उनका तिलक करके पुष्प अर्पित किए जाते हैं। फिर श्रद्धापूर्वक भोजन परोसा जाता है।

दक्षिणा और आशीर्वाद

  • भोजन उपरांत कन्याओं को फल, मिठाई, वस्त्र या अन्य उपहार दिए जाते हैं। दक्षिणा देकर उन्हें ससम्मान विदा किया जाता है।

पितृ पक्ष में कन्या भोजन कराने के लाभ

पितृ पक्ष में कन्या भोजन कराने से घर में सुख-शांति और आर्थिक संपन्नता आती है, हर तरह के दोष खत्म होते हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन उन्नतशील रहता है और धन-धान्य की कमी नहीं होती है। यह कर्म पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है, और इससे परिवार में समृद्धि आती है।

पितरों की तृप्ति और मोक्ष

  • कन्या भोजन से पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इससे पितृ दोष का निवारण होता है।

धन-धान्य और समृद्धि

  • कन्याओं को भोजन कराने से घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता बनी रहती है। आर्थिक परेशानियां कम होती हैं।

संतान सुख की प्राप्ति

  • कन्या भोजन करने वाले दंपत्ति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। संतान की प्रगति और खुशहाली में भी यह लाभकारी माना गया है।

रोग-व्याधियों से मुक्ति

  • परिवार पर से नकारात्मक ऊर्जा और संकट दूर होते हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं कम होती हैं।

माँ दुर्गा का आशीर्वाद

  • कन्याएं माँ दुर्गा का स्वरूप होती हैं। उन्हें भोजन कराने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जीवन में शक्ति, साहस और सफलता मिलती है।

श्राद्ध कर्म की पूर्णता

  • कन्या भोजन करने से पितृ पक्ष के श्राद्ध और तर्पण कर्म पूर्ण माने जाते हैं। इससे श्राद्ध का फल कई गुना बढ़ जाता है।

कन्या भोजन से जड़ी सावधानियां एवं नियम

नियम

  • भोजन बनाने और परोसने से पहले स्थान को शुद्ध व पवित्र करें। भोजन सात्विक, ताजा और घर में बना हुआ होना चाहिए।
  • आमतौर पर 2 वर्ष से 10–12 वर्ष की कन्याओं को भोजन कराया जाता है। संख्या विषम (जैसे 5, 7, 9, 11) हो तो इसे अधिक शुभ माना गया है।
  • कन्याओं के चरण धोकर, तिलक लगाकर और पुष्प अर्पित करके उनका सम्मान करें। उन्हें माता दुर्गा का स्वरूप मानकर आदरपूर्वक भोजन कराएं।
  • पूरी, सब्जी, दाल, चावल, खीर/हलवा, फल आदि सात्विक व्यंजन परोसें। भोजन शुद्ध बर्तनों में परोसें और पहले कन्याओं को ही खिलाएं।
  • भोजन उपरांत कन्याओं को फल, मिठाई, वस्त्र या कोई उपहार दें। दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करना आवश्यक है।

सावधानियां

  • भोजन बनाते समय लहसुन-प्याज, मांसाहार और तामसिक चीज़ों का प्रयोग न करें।
  • भोजन के समय किसी प्रकार का दिखावा, अपमान या उपेक्षा न हो।
  • कन्याओं को खिलाते समय मन में शुद्ध भाव और श्रद्धा अवश्य हो।
  • भोजन कराए बिना खाली दक्षिणा या उपहार न दें, यह अधूरा माना जाता है।
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Published by Sri Mandir·September 2, 2025

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