पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन का महत्व
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पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन का महत्व

क्या आप जानते हैं पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन कराना क्यों सबसे खास माना जाता है? जानें इसका महत्व, विधि और पूर्वजों की कृपा पाने का रहस्य।

ब्राह्मण को भोजन कराने के बारे में

मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान स्वीकार कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। विशेष रूप से, इस अवधि में ब्राह्मण को भोजन कराना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

ब्राह्मण भोजन की परंपरा

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, क्योंकि यह अवधि अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए समर्पित होती है। इस पवित्र काल में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के साथ-साथ ब्राह्मण भोजन का विशेष विधान बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि पितरों तक अन्न और जल सीधा नहीं पहुँच सकता, इसलिए ब्राह्मणों को भोजन कराने के माध्यम से यह अर्पित किया जाता है। ऐसा करने से न केवल पितर प्रसन्न होते हैं, बल्कि वे वंशजों को आशीर्वाद देकर उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन को सबसे श्रेष्ठ और फलदायी कर्म माना गया है।

पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन क्यों आवश्यक है?

पितृ पक्ष के 16 दिन हमारे पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए माने जाते हैं। इस अवधि में किए जाने वाले श्राद्ध कर्म का मुख्य आधार ब्राह्मणों को भोजन कराना है। धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मण भोजन के बिना श्राद्ध अधूरा रहता है, क्योंकि उनके द्वारा ग्रहण किया गया अन्न सीधा पितरों तक पहुंचता है और उन्हें तृप्त करता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराना अनिवार्य माना गया है। ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसके अतिरिक्त, मान्यता यह भी है कि जब ब्राह्मण तृप्त होते हैं, तो उनका आशीर्वाद सीधे पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

इसलिए पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोज केवल एक परंपरा ही नहीं, बल्कि पूर्वजों को स्मरण और तृप्त करने का सबसे आवश्यक और पवित्र माध्यम है।

ब्राह्मण भोजन में दी जाने वाली सामग्री

पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराना एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण परंपरा है। मान्यता है कि ब्राह्मण भोज के माध्यम से पितर प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। अग्निपुराण में ब्राह्मण भोजन से जुड़ी कई विशेष बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करना आवश्यक माना गया है।

  • खीर (गाय के दूध से बनी हुई) - पितृपक्ष के भोजन में खीर का विशेष महत्व है। खीर हमेशा गाय के दूध से ही तैयार करनी चाहिए। भैंस के दूध से बनी खीर वर्जित है क्योंकि भैंस यमराज का वाहन है और इसे पितरों के लिए अशुभ माना गया है। गाय के दूध से बनी खीर पितरों को प्रसन्न करती है और उन्हें सीधा प्राप्त होती है।

  • तोरई की सब्जी - श्राद्ध भोजन में तोरई की सब्जी अवश्य परोसी जानी चाहिए। अग्निपुराण के अनुसार यह व्यंजन पितरों के हिस्से में अवश्य जाता है और उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है।

  • उड़द की दाल - श्राद्ध में उड़द की दाल का प्रयोग बेहद शुभ माना गया है। इससे बने व्यंजन जैसे इमरती, दही बड़ा, पकौड़े, दाल आदि ब्राह्मणों को खिलाए जा सकते हैं। उड़द की दाल का सेवन पितरों और प्रेतों तक पहुंचता है और उन्हें शांति देता है।

ब्राह्मण भोजन कराने की विधि

पितृ पक्ष में धर्म और परंपरा के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है। श्रद्धा और विधि-विधान से कराया गया यह ब्राह्मण भोज हमारे पितरों को तृप्त करता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस अवसर पर ब्राह्मण भोज करते समय कुछ नियमों और मर्यादाओं का ध्यान रखना आवश्यक है। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया इस प्रकार है:-

  • श्राद्ध के लिए ब्राह्मणों को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करें और पंडित जी के मार्गदर्शन में संकल्प अवश्य करें।

  • पितृ पक्ष में श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय ही किया जाता है। ध्यान रखें कि भोजन ऐसे ब्राह्मणों को कराना चाहिए जो किसी अन्य श्राद्ध का भोजन न करते हों।

  • श्राद्ध का भोजन सात्त्विक होना चाहिए। इसमें लहसुन, प्याज आदि का प्रयोग नहीं करें।

  • भोजन का एक भाग कुत्ते, कौवे और गाय को भी अवश्य खिलाएँ। यदि यह संभव न हो तो पंडित जी की सलाह अनुसार उनका हिस्सा अलग रखें।

  • भोजन परोसने के लिए पीतल, कांसा, चांदी या पत्तल का प्रयोग करें।

  • ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन कराया जाए। भोजन और जल दोनों हाथों से अर्पित करें।

  • भोजन के बाद ब्राह्मणों को दान, वस्त्र, अनाज और दक्षिणा दें। ऐसा करने से माना जाता है कि पूर्वज भी प्रसन्न होकर विदा लेते हैं।

  • आदरपूर्वक ब्राह्मणों को विदा करके उनका आशीर्वाद लें और शेष प्रसाद स्वयं ग्रहण करें।

निष्कर्ष

पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज केवल भोजन दान नहीं बल्कि श्रद्धा और विश्वास से जुड़ा हुआ कर्म है। खीर, तोरई और उड़द की दाल जैसे विशेष व्यंजन अनिवार्य रूप से परोसने चाहिए। जब इन नियमों का पालन सही ढंग से किया जाता है, तो पितरों की कृपा और आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है।

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Published by Sri Mandir·September 4, 2025

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