क्या आप जानते हैं पितृ पक्ष में 16 श्राद्ध क्यों किए जाते हैं? जानें इनका महत्व, धार्मिक मान्यता और पितरों को तृप्त करने में इनके लाभ।
हिंदू धर्म में श्राद्ध को इतना महत्व दिया गया है कि इसके लिए 16 प्रकारों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें "षोडश श्राद्ध" कहा जाता है। हर श्राद्ध का अपना अलग उद्देश्य और महत्व है । कहीं यह पितरों को तृप्त करने के लिए किया जाता है तो कहीं वंशजों के जीवन से पितृ दोष को दूर करने के लिए। लेकिन आखिर ये 16 श्राद्ध कौन-कौन से हैं? और क्यों इन्हें जीवन और मृत्यु के बीच की कड़ी माना जाता है? आगे इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि 16 श्राद्ध क्या हैं, उनका धार्मिक महत्व क्या है और क्यों इन्हें सदियों से हिंदू परंपरा में अनिवार्य माना गया है।
पितृ पक्ष 16 दिनों की एक विशेष अवधि होती है, जिसे षोडश श्राद्ध कहा जाता है। इस दौरान हिंदू अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष का समय भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। इन 16 दिनों को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस अवधि में हमारी भावनाएँ, प्रार्थनाएँ और अर्पण पितरों की आत्माओं तक आसानी से पहुँचते हैं। ऐसा भी विश्वास है कि वर्षा ऋतु के समाप्त होने के बाद आकाश पूरी तरह निर्मल हो जाता है, जिससे पितरों तक संदेश और श्रद्धा पहुँचाना और भी सरल हो जाता है।
इस समय पूर्वजों के लिए विशेष रूप से भोजन और जल अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि पितर इन अर्पणों को स्वीकार कर अपने वंशजों को आशीर्वाद, सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।
श्राद्ध की 16 तिथियाँ होती हैं:- पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या
जिस तिथि को किसी व्यक्ति का निधन हुआ हो (चाहे वह शुक्ल पक्ष में हो या कृष्ण पक्ष में), पितृ पक्ष की उसी तिथि पर उसका श्राद्ध करने का विधान है।
यहां पर 16 श्राद्ध (षोडश श्राद्ध) की सूची उनके संक्षिप्त महत्व के साथ पॉइंट्स में दी जा रही है:-
नित्य श्राद्ध – प्रतिदिन पितरों की स्मृति में किया जाने वाला श्राद्ध।
नैमित्तिक श्राद्ध – किसी विशेष कारण या अवसर (जैसे मृत्यु तिथि) पर किया जाने वाला।
काम्य श्राद्ध – विशेष इच्छा या मनोकामना पूर्ण करने के लिए।
वृषोत्सर्ग श्राद्ध – वृषभ (बैल) का दान करके पितरों की शांति हेतु।
सपिंडन श्राद्ध – मृतक को पितरों की पंक्ति में सम्मिलित करने का।
पार्वण श्राद्ध – पितृ पक्ष के अमावस्या या संक्रांति पर किया जाने वाला प्रमुख श्राद्ध।
गोष्ठी श्राद्ध – ब्राह्मणों की सभा या गोष्ठी में किया जाने वाला।
शुद्ध्यर्थ श्राद्ध – किसी अपवित्रता या दोष को दूर करने के लिए।
काम्येष्टि श्राद्ध – किसी विशेष यज्ञ या कार्य की सफलता के लिए।
संकल्प श्राद्ध – किसी संकल्प या व्रत की सिद्धि हेतु।
तर्पण श्राद्ध – जल एवं अन्न से पितरों को तृप्त करने का।
हिरण्य श्राद्ध – धन या स्वर्ण के दान के माध्यम से किया जाने वाला।
एकोदिष्ट श्राद्ध – विशेषत: किसी एक पितर के लिए किया गया श्राद्ध।
पौत्रिक श्राद्ध – पोते द्वारा अपने पितरों के लिए किया गया श्राद्ध।
दैविक श्राद्ध – देवताओं और ऋषियों को अर्पित कर पितरों की कृपा पाने के लिए।
यात्रार्थ श्राद्ध – किसी तीर्थ यात्रा या धार्मिक कार्य के अवसर पर किया गया श्राद्ध।
महर्षि सुमंतु के अनुसार – श्राद्ध से बढ़कर संसार में कोई और कल्याणकारी साधन नहीं माना जाता।
गरुड़ पुराण में कहा गया है – श्राद्ध कर्म से प्रसन्न होकर पितर अपने वंशजों को दीर्घायु, संतान, यश, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, पशुधन, सुख, धन और अन्न का आशीर्वाद देते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार – श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतान, धन, विद्या, सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
ब्रह्म पुराण में वर्णित है – श्रद्धा और भक्ति से किया गया श्राद्ध कुल को दुःखमुक्त करता है। पिण्डों पर गिरी हुई जल की बूंदें भी पितरों के पोषण का साधन बनती हैं, चाहे वे पशु-पक्षियों की योनि में ही क्यों न हों। परिवार में बाल्यावस्था में दिवंगत हुए आत्माओं को भी सम्मार्जन के जल से तृप्ति मिलती है।
कूर्म पुराण कहता है – जो प्राणी एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है और पुनः जन्म-मृत्यु के चक्र में नहीं पड़ता।
श्राद्ध केवल पितरों की तृप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि श्राद्धकर्ता को भी पुण्य, सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
श्राद्ध का महत्व केवल पितरों की तृप्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह श्राद्धकर्ता को भी दीर्घायु, सुख, समृद्धि और मोक्ष का वरदान देता है। इसलिए श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया श्राद्ध जीवन को कल्याणकारी और पितरों को संतुष्ट करने वाला महान कर्तव्य माना गया है।
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