पितृपक्ष 2025 कब है?
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पितृपक्ष 2025 कब है?

जानिए पितृपक्ष 2025 की तिथियाँ, महत्व और श्राद्ध की विधि। इस अवधि में पितरों को अर्पण करने से परिवार में सुख-समृद्धि, संतति सुख और पितृ कृपा प्राप्त होती है।

पितृपक्ष के बारे में

पितृपक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों की स्मृति और श्राद्ध का विशेष काल है। यह भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान पितरों के तर्पण, पिंडदान, दान और भोजन कराना पुण्यकारी माना जाता है।

कब से शुरू होगा पितृपक्ष?

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष का प्रारंभ होता है, और इसका समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि को होता है। पितृपक्ष की अवधि में पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म करने का विधान है। मान्यता है कि इस समय पूर्वज अपने परिवार के सदस्यों से मिलने पृथ्वीलोक आते हैं।

2025 में कब से शुरू होगा पितृ पक्ष?

  • साल 2025 में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 08 सितंबर 2025, सोमवार को पड़ रही है। ऐसे में पितृ पक्ष इसी दिन से प्रारंभ होगा।
  • पितृ पक्ष का समापन अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होता है, जो कि इस साल 21 सितंबर 2025, रविवार के दिन पड़ रहा है।

पितृ पक्ष का महत्व

पितरों का आशीष पाने के लिए पितृ पक्ष का समय विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार, हमारी पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वज, मृत्यु के बाद स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पितृलोक में विचरण करते हैं। श्राद्ध पक्ष के समय यही पूर्वज पितृलोक से पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

मान्यता है कि इस समय किया श्राद्ध तर्पण पितरों को सीधे प्राप्त होता है, जिससे प्रसन्न होकर वे अपने परिवार को बाधाओं से बचाते हैं। वहीं, इस समय जो वंशज अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते हैं, उनसे पूर्वज रूष्ट हो सकते हैं, और उनके प्रकोप के कारण आपके जीवन में बाधा आ सकती है। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष है, उन्हें पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, व पिंडदान करके इस दोष से छुटकारा मिल सकता है।

पितृ पक्ष के श्राद्ध की तिथियां व मुहूर्त

पूर्णिमा श्राद्ध: 07 सितम्बर 2025, रविवार को

  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 07, 2025 को 01:41 ए एम बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 07, 2025 को 11:38 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:31 ए एम से 12:21 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:21 पी एम से 01:11 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:11 पी एम से 03:41 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 30 मिनट्स

प्रतिपदा श्राद्ध: 08 सितंबर 2025, सोमवार

  • प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 07, 2025 को 11:38 पी एम बजे
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 08, 2025 को 09:11 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:30 ए एम से 12:20 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:20 पी एम से 01:10 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:10 पी एम से 03:40 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 30 मिनट्स

द्वितीया श्राद्ध: मंगलवार, 09 सितंबर 2025

  • द्वितीया तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 08, 2025 को 09:11 पी एम बजे
  • द्वितीया तिथि समाप्त - सितम्बर 09, 2025 को 06:28 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:30 ए एम से 12:20 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:20 पी एम से 01:10 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:10 पी एम से 03:39 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

तृतीया श्राद्ध: बुधवार, सितम्बर 10, 2025 को

  • तृतीया तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 09, 2025 को 06:28 पी एम बजे
  • तृतीया तिथि समाप्त - सितम्बर 10, 2025 को 03:37 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:30 ए एम से 12:20 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:20 पी एम से 01:09 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:09 पी एम से 03:38 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

चतुर्थी श्राद्ध- बुधवार, सितम्बर 10, 2025 को

  • चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 10, 2025 को 03:37 पी एम बजे
  • चतुर्थी तिथि समाप्त - सितम्बर 11, 2025 को 12:45 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:30 ए एम से 12:20 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:20 पी एम से 01:09 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:09 पी एम से 03:38 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

महा भरणी श्राद्ध: बृहस्पतिवार, सितम्बर 11, 2025 को

  • भरणी नक्षत्र प्रारम्भ - सितम्बर 11, 2025 को 01:58 पी एम बजे
  • भरणी नक्षत्र समाप्त - सितम्बर 12, 2025 को 11:58 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:30 ए एम से 12:19 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:19 पी एम से 01:09 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:09 पी एम से 03:38 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

पंचमी श्राद्ध: बृहस्पतिवार, सितम्बर 11, 2025 को

  • पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 11, 2025 को 12:45 पी एम बजे
  • पञ्चमी तिथि समाप्त - सितम्बर 12, 2025 को 09:58 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:30 ए एम से 12:19 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:19 पी एम से 01:09 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:09 पी एम से 03:38 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

षष्ठी श्राद्ध: शुक्रवार, सितम्बर 12, 2025 को

  • षष्ठी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 12, 2025 को 09:58 ए एम बजे
  • षष्ठी तिथि समाप्त - सितम्बर 13, 2025 को 07:23 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:29 ए एम से 12:19 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:19 पी एम से 01:08 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:08 पी एम से 03:37 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 29 मिनट्स

सप्तमी श्राद्ध: शनिवार, सितम्बर 13, 2025 को

  • सप्तमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 13, 2025 को 07:23 ए एम बजे
  • सप्तमी तिथि समाप्त - सितम्बर 14, 2025 को 05:04 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:29 ए एम से 12:18 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मुहूर्त - 12:18 पी एम से 01:08 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:08 पी एम से 03:36 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 28 मिनट्स

अष्टमी श्राद्ध: रविवार, सितम्बर 14, 2025 को

  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 14, 2025 को 05:04 ए एम बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 15, 2025 को 03:06 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मुहूर्त - 11:29 ए एम से 12:18 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:18 पी एम से 01:07 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:07 पी एम से 03:35 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 28 मिनट्स

नवमी श्राद्ध: सोमवार, सितम्बर 15, 2025 को

  • नवमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 15, 2025 को 03:06 ए एम बजे
  • नवमी तिथि समाप्त - सितम्बर 16, 2025 को 01:31 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:28 ए एम से 12:18 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:18 पी एम से 01:07 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:07 पी एम से 03:34 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 28 मिनट्स

दशमी श्राद्ध: मंगलवार, सितम्बर 16, 2025 को

  • दशमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 16, 2025 को 01:31 ए एम बजे
  • दशमी तिथि समाप्त - सितम्बर 17, 2025 को 12:21 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:28 ए एम से 12:17 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:17 पी एम से 01:06 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:06 पी एम से 03:34 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 27 मिनट्स

एकादशी श्राद्ध: बुधवार, सितम्बर 17, 2025 को

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 17, 2025 को 12:21 ए एम बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त - सितम्बर 17, 2025 को 11:39 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:28 ए एम से 12:17 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:17 पी एम से 01:06 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:06 पी एम से 03:33 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 27 मिनट्स

द्वादशी श्राद्ध: बृहस्पतिवार, सितम्बर 18, 2025 को

  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 17, 2025 को 11:39 पी एम बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त - सितम्बर 18, 2025 को 11:24 पी एम बजे

+-मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:27 ए एम से 12:16 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:16 पी एम से 01:05 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:05 पी एम से 03:32 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 27 मिनट्स

मघा श्राद्ध: शुक्रवार, सितम्बर 19, 2025 को

  • मघा नक्षत्र प्रारम्भ - सितम्बर 19, 2025 को 07:05 ए एम बजे
  • मघा नक्षत्र समाप्त - सितम्बर 20, 2025 को 08:05 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:27 ए एम से 12:16 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:16 पी एम से 01:05 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:05 पी एम से 03:31 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 26 मिनट्स

त्रयोदशी श्राद्ध- शुक्रवार, सितम्बर 19, 2025 को

  • त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 18, 2025 को 11:24 पी एम बजे
  • त्रयोदशी तिथि समाप्त - सितम्बर 19, 2025 को 11:36 पी एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:27 ए एम से 12:16 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:16 पी एम से 01:05 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:05 पी एम से 03:31 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 26 मिनट्स

चतुर्दशी श्राद्ध: शनिवार, सितम्बर 20, 2025 को

  • चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 19, 2025 को 11:36 पी एम बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्त - सितम्बर 21, 2025 को 12:16 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:27 ए एम से 12:15 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:15 पी एम से 01:04 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:04 पी एम से 03:30 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 26 मिनट्स

सर्वपितृ अमावस्या: रविवार, सितम्बर 21, 2025 को

  • अमावस्या तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 21, 2025 को 12:16 ए एम बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त - सितम्बर 22, 2025 को 01:23 ए एम बजे

मुहूर्त:-

  • कुतुप मूहूर्त - 11:26 ए एम से 12:15 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • रौहिण मूहूर्त - 12:15 पी एम से 01:04 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स
  • अपराह्न काल - 01:04 पी एम से 03:30 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 26 मिनट्स

श्राद्ध के लिए 3 सबसे महत्वपूर्ण तिथियां

वैसे तो पितृ पक्ष की सभी तिथियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि हर तिथि पर किसी न किसी के पूर्वज का देहांत हुआ होता है, और वे उसी तिथि पर उनके लिए श्राद्ध, तर्पण आदि अनुष्ठान करते हैं। लेकिन पितृ पक्ष में भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या या अमावस्या श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है

क्या है पितृ पक्ष?

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित विशेष समय है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। यह भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से आश्विन अमावस्या तक, लगभग 16 दिनों तक चलता है। इस अवधि में हिंदू परंपरा के अनुसार अपने पितरों (पूर्वजों) का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करके उन्हें स्मरण किया जाता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।

क्यों मनाया जाता है पितृ पक्ष?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा सीधे मोक्ष नहीं पाती, बल्कि वह पितृलोक में जाती है। पितृ पक्ष के दौरान माना जाता है कि पितृलोक के द्वार खुल जाते हैं और हमारे पूर्वज पृथ्वी पर अपने वंशजों से आशीर्वाद देने आते हैं। इस समय किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितर संतुष्ट होकर वंशजों को आशीष देते हैं और उन्हें जीवन की कठिनाइयों से उबारते हैं। इसलिए पितृ पक्ष को अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, आभार और कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व भी माना जाता है।

पितृ पक्ष का महत्व

  • पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है – पितृ पक्ष में किया गया श्राद्ध और तर्पण सीधे पितरों तक पहुँचता है और उनके आशीष से परिवार में सुख-शांति आती है।
  • पितृ दोष का निवारण – जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
  • धन-समृद्धि और उन्नति – पितरों की कृपा से जीवन में सुख-संपत्ति और समृद्धि आती है।
  • पारिवारिक कल्याण – पूर्वज प्रसन्न होकर परिवार की रक्षा करते हैं और घर में शांति बनाए रखते हैं।
  • आध्यात्मिक लाभ – यह समय व्यक्ति को अपने मूल और वंशजों के प्रति कृतज्ञता जताने का अवसर देता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति होती है।

पितृ पक्ष में श्राद्ध का अर्थ एवं महत्व?

अर्थ

पितृ पक्ष में मृत परिजनों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने को श्राद्ध कहा जाता है। ये पितरों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने की एक क्रिया है। श्राद्ध के समय सर्वप्रथम प्रातःकाल नित्यकर्म करके स्नान करें। इसके पश्चात् पितरों को याद करते हुए उन्हें जल में काला तिल मिलाकर अर्पित करें, और उन्हें प्रणाम करें।

महत्व

विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं।

पितृ पक्ष में पिंडदान का अर्थ एवं महत्व

अर्थ

पिंडदान का अर्थ होता है अपने मृत परिजनों को भोजन का दान देना। मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज गाय, कुत्ता, चींटी, कौआ आदि के रूप में आकर भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए पितृ पक्ष के समय भोजन के पांच अंश निकालने की परंपरा है। पिंडदान के दौरान मृतक के निमित्त जौ या चावल के आटे को गूंथ कर गोल आकृति वाले पिंड बनाए जाते हैं। इसलिए इसे पिंडदान कहा जाता है।

महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रद्धापूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों की आत्मा वर्ष भर के लिए तृप्त हो जाती है। पुराणों में ये भी वर्णन मिलता है कि पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य का आशीर्वाद देते हैं।

पितृ पक्ष में तर्पण का अर्थ एवं महत्व

अर्थ

पितरों को जल दान या तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान हाथ में जल, कुश, अक्षत, तिल आदि लेकर मृत परिजनों का तर्पण करने का विधान है। इस समय लोग दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों का स्मरण करते हैं, और उनका आह्वान करके जल ग्रहण करने की प्रार्थना करते हैं।

महत्व

जिस प्रकार पिंडदान से पितरों की क्षुधा शांत होती है, उसी प्रकार तर्पण करने से उनकी जल की इच्छा तृप्त होती है। मान्यता है कि तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और वे अपने अपने वंशजों को सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं।

इन मंत्रों के जाप से प्रसन्न होंगे पितृ

पितृ तर्पण मंत्र

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ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः ।

पितृ शांति मंत्र

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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं पितृदेवताभ्यो नमः ।

पितृ सुख-समृद्धि मंत्र

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय पितृभ्यः स्वाहा ।

सर्व पितृ तृप्ति मंत्र (अत्यंत प्रभावी)

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ॐ सर्वेभ्यः पितृभ्यः स्वधा नमः ।

पितरों को खुश करने के लिए करें ये उपाय

श्राद्ध व तर्पण करें – तिल, कुशा, जल और अक्षत से पितरों को तर्पण अर्पित करें। पिंडदान – गेहूँ, जौ, चावल और तिल से बने पिंड पितरों को अर्पित करें। गाय को भोजन कराएं – पितृ पक्ष में गाय को रोटी, हरा चारा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है। ब्राह्मण व गरीबों को भोजन कराना – यह सबसे श्रेष्ठ कर्म है, इससे पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं। तुलसी व पीपल की पूजा करें – इनकी पूजा से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पवित्र आचरण रखें – पितृ पक्ष में संयम, सत्य बोलना और साधारण जीवन जीना लाभकारी होता है।

पितरों को खुश करने के धार्मिक उपाय

गंगा जल से तर्पण – गंगा जल में तिल मिलाकर पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। दीपदान – नदी या तालाब के किनारे दीप जलाकर पितरों के लिए अर्पण करें। दान-पुण्य – अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़ और दक्षिणा ब्राह्मणों को दान करें। व्रत और कथा – पितृ पक्ष में विष्णु भगवान की पूजा और “गजेन्द्र मोक्ष कथा” का पाठ करने से पितर प्रसन्न होते हैं। कौओं को भोजन – कौए को पितरों का प्रतीक माना जाता है। इस समय कौओं को भोजन कराने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है।

इन उपायों और मंत्रों के माध्यम से आप अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद पाकर जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

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Published by Sri Mandir·September 2, 2025

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