महालय श्राद्ध 2025 कब है?
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महालय श्राद्ध 2025 कब है?

महालय श्राद्ध पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। जानें 2025 में महालय श्राद्ध कब है, इसका महत्व और पूजन विधि।

महालय श्राद्ध के बारे में

महालय श्राद्ध पितृ पक्ष का सबसे प्रमुख दिन है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। माना जाता है कि महालय श्राद्ध करने से पूर्वज तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इस लेख में जानिए महालय श्राद्ध का महत्व और इसे करने की खास विधि।

महालय श्राद्ध क्या है?

महालय श्राद्ध पितृ पक्ष का समापन करने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है, जो पितरों को सम्मान देने के लिए समर्पित होता है। इस दिन, जिसे सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहते हैं, उन सभी दिवंगत आत्माओं के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि या परिवार से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है। इसका उद्देश्य पितरों को शांति प्रदान करना और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करना है।

महालय श्राद्ध 2025 कब है?

2025 में महालय श्राद्ध रविवार, 7 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शुरू होगा और यह रविवार, 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा।

महालय श्राद्ध का महत्व

महालया श्राद्ध का महत्व पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करना, उनके आशीर्वाद प्राप्त करना, और पितृलोक में उनकी आत्माओं की शांति सुनिश्चित करना है। इस दौरान किए गए कर्मकांडों से पितरों को संतुष्टि मिलती है, और वे अपने वंशजों को लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, और अखंड जीवन का आशीर्वाद देते हैं। यह परिवार की पुरानी पीढ़ियों से जुड़ने का एक तरीका है, जिससे परिवार के बंधन मजबूत होते हैं। इस अनुष्ठान से पारिवारिक समृद्धि और दीर्घायु मिलती है। यह एक धार्मिक प्रथा से बढ़कर है, यह पीढ़ियों के बीच के बंधन को मजबूत करता है और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है। महालय श्राद्ध करने से न केवल पितरों को तृप्त किया जाता है, बल्कि श्राद्ध करने वाले को भी लाभ प्राप्त होता है।

महालय श्राद्ध की पौराणिक कथा

महालय श्राद्ध की पौराणिक कथाओं में कर्ण का प्रसंग प्रमुख है, जिनके श्राद्ध न करने पर स्वर्ग में भोजन नहीं मिलता था, और उन्हें पितरों को तृप्त करने के लिए सोलह दिनों का समय मिला, जो पितृ पक्ष का आधार बना। एक अन्य कथा के अनुसार, निमि ऋषि ने पहली बार पितरों के लिए श्राद्ध किया, जिससे पितृ पक्ष की परंपरा शुरू हुई, और इसके बाद अन्य ऋषियों और समाज ने इसे अपनाया।

कर्ण की कथा

कर्ण की मृत्यु के बाद, उन्हें स्वर्ग में भोजन के स्थान पर सोने-चांदी और आभूषण दिए गए, जिससे वे हैरान हुए और उन्होंने इंद्र से इसका कारण पूछा। इंद्र ने उत्तर देते हुए बताया कि कर्ण ने जीवन भर केवल भौतिक वस्तुएं दान कीं, लेकिन कभी अपने पितरों को भोजन का दान नहीं दिया, इसलिए उन्हें स्वर्ग में भोजन का सुख नहीं मिल पा रहा था। कर्ण के पश्चाताप के बाद, इंद्र ने उन्हें सोलह दिनों का समय दिया, ताकि वे पृथ्वी पर जाकर अपने पितरों को भोजन दान, पिंड दान और तर्पण करके उन्हें संतुष्ट कर सकें। यह सोलह दिनों की अवधि पितृ पक्ष कहलाई, और इसी प्रथा के अनुसार आज भी हम अपने मृत पूर्वजों को भोजन दान और पिंडदान के द्वारा तृप्त करते हैं।

निमि ऋषि की कथा

अत्रि मुनि के वंश में निमि ऋषि का जन्म हुआ था, और उनके पुत्र की अल्पायु में मृत्यु हो गई। इससे वे अत्यंत दुखी हुए। पुत्र के वियोग से पीड़ित होकर निमि ऋषि ने अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया और पिंडदान किया। अन्य ऋषियों ने इस प्रथा को देखा और अपने पितरों के लिए श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे यह परंपरा समाज के चारों वर्णों में फैल गई, जिससे पितृ पक्ष की प्रथा स्थापित हुई।

कथा का महत्व

इसी घटना के कारण पितृ पक्ष में भोजन, अन्न और जल का दान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया। यह मान्यता है कि इस समय पितरों की आत्माएँ धरती पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण और अन्नदान की अपेक्षा करती हैं। महालय अमावस्या को पितरों को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद पाने का सबसे श्रेष्ठ दिन माना जाता है।

महालय श्राद्ध विधि

  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर के पवित्र स्थान या नदी/तालाब के तट पर श्राद्ध का संकल्प लें।
  • कुशा (दर्भा), तिल, जल, पके हुए भोजन और पिंड (चावल, तिल और आटे से बने गोले) की व्यवस्था करें।
  • दाहिने हाथ में जल, तिल और कुशा लेकर पितरों का स्मरण करें।
  • ‘पितृ देवताओं’ का आह्वान करें और संकल्प लें कि आज का श्राद्ध/तर्पण मैं अपने पितरों के लिए करता हूं।
  • जल में तिल मिलाकर सूर्य की ओर मुख करके ‘तर्पण’ करें।
  • कुशा की अंगूठी (पवित्री) पहनकर जल अर्पण करें।
  • पितरों का नाम, गोत्र और “स्वधा” मंत्र उच्चारण करें।
  • आटे, तिल और चावल से बने पिंड पितरों के नाम से अर्पित करें।
  • पिंड को तिल और जल के साथ भूमि पर या पवित्र स्थल पर रखें।
  • श्रद्धा भाव से "पितृ देवताओं" की शांति के लिए प्रार्थना करें।
  • पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
  • संभव हो तो गौ, कुत्ते, पक्षियों और गरीबों को अन्न दान करें।
  • अंत में भगवान विष्णु, यमराज और पितृ देवताओं से प्रार्थना करें कि वे पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करें।

महालय श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें?

महालय श्राद्ध में क्या करें?

  • प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पितरों का स्मरण करके श्राद्ध और तर्पण का संकल्प लें।
  • तिल, जल और पिंड (चावल, आटा, तिल से बने गोले) अर्पित करें।
  • ब्राह्मण को सात्विक भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
  • अन्न, वस्त्र, तिल, जल और जरूरत का सामान दान करें।
  • कौए, गाय, कुत्ते आदि को भोजन कराना बहुत शुभ माना गया है।
  • घर में शांति और पवित्रता बनाए रखें।

महालय श्राद्ध में क्या न करें?

  • मांस-मदिरा का सेवन न करें।
  • प्याज-लहसुन व तामसिक भोजन से परहेज करें।
  • श्राद्ध के दिन क्रोध, झगड़ा या अपशब्द बोलना वर्जित है।
  • बाल कटाना, दाढ़ी-मूंछ बनवाना, नाखून काटना आदि कार्य न करें।
  • इसे केवल औपचारिकता न मानें, बल्कि श्रद्धा से करें।
  • सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनना श्रेष्ठ है।
  • श्राद्ध तिथि को भूलना नहीं चाहिए, विशेषकर महालय अमावस्या का श्राद्ध करना जरूरी है।

महालय श्राद्ध में दान का महत्व

पितरों की तृप्ति

पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से अन्न-जल की अपेक्षा रखते हैं। इस समय किया गया दान उन्हें संतुष्ट करता है और वे आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

पुण्य की प्राप्ति

शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ पक्ष में किया गया दान, साधारण समय से अनगिनत गुना अधिक फलदायी होता है। यह न केवल पितरों को तृप्त करता है बल्कि दाता को भी पुण्य, यश और दीर्घायु देता है।

आत्मा की शांति

दान से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि अन्न, जल, वस्त्र और गौ-दान से आत्माएँ संतुष्ट होकर जन्म-जन्मांतर के कष्टों से मुक्त होती हैं।

वंश की समृद्धि

श्राद्ध में किया गया दान वंशजों के जीवन में सुख-समृद्धि, संतान की उन्नति और घर में शांति लाता है।

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Published by Sri Mandir·September 4, 2025

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