मघा श्राद्ध क्या होता है? यहां जानें इसका महत्व, सही विधि और परंपराएं। माघ मास में किए गए श्राद्ध से पितरों की कृपा मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मघा श्राद्ध पितृपक्ष की उस तिथि को किया जाता है जब चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है। इस दिन विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया जाता है।
मृतक पितरों की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध का विधान है, जो कि हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में किया जाता है। इस श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष कहते हैं। पितृपक्ष में मघा नक्षत्र पर किए गए श्राद्ध, तर्पण का विशेष महत्व है, क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार मघा नक्षत्र के स्वामी स्वयं पितृ होते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति मघा नक्षत्र में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसे श्राद्ध का पुण्य फल शीघ्र प्राप्त होता है, और जातक की कई पीढ़ियों का जीवन सुख संपत्ति से परिपूर्ण होता है।
पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि को मघा नक्षत्र में किए जाने वाले श्राद्ध का विशेष महत्व है। मान्यता है कि मघा नक्षत्र पर स्वयं पितरों का प्रभाव होता है। इस दिन वे श्राद्ध-तर्पण पाने के बाद अपने वंशजों से शीघ्र प्रसन्न होते हैं, और उन्हें पद-प्रतिष्ठा, धन-संपत्ति व वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
मान्यता है कि मघा श्राद्ध करने से पितृ दोष व पितृ बाधा का भी निवारण होता है। इस दिन किया गया श्राद्ध न केवल श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शुभ फल प्रदान करता है, बल्कि जिन पितरों के निमित्त यह श्राद्ध किया जाता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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