शैलपुत्री किसका प्रतीक हैं?
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शैलपुत्री किसका प्रतीक हैं?

क्या आप जानते हैं माता शैलपुत्री किसका प्रतीक मानी जाती हैं और इनके पूजन से भक्तों को कौन से आध्यात्मिक व सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।

माँ शैलपुत्री के प्रतीक के बारे में

नवरात्रि में पूजे जाने वाले माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में पहला रूप माँ शैलपुत्री का होता है। इन्हें माता पार्वती भी कहा जाता है। ‘शैल’ शब्द का मतलब है पर्वत और ‘पुत्री’ का अर्थ है बेटी। इस प्रकार शैलपुत्री का अभिप्राय है पर्वतराज हिमालय की पुत्री।

शैलपुत्री माता का स्वरूप और पौराणिक कथा

माँ शैलपुत्री का स्वरूप

नवरात्रि की आराधना की शुरुआत माँ शैलपुत्री से होती है। उनके रूप में गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है:

  • वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं, जो संयम और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है।
  • उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित रहते हैं।
  • माथे पर सुशोभित अर्धचंद्र उन्हें शीतलता और कोमलता का स्वरूप बनाता है।
  • उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व सादगी, पवित्रता और साहस का प्रतीक है।
  • पर्वतराज हिमालय की कन्या होने के कारण ही उन्हें शैलपुत्री नाम से जाना जाता है

मां शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा

माँ शैलपुत्री की गाथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायी है। उनके जन्म और स्वरूप से जुड़े कई प्रसंग पुराणों में वर्णित हैं।

1. सती से शैलपुत्री बनने तक: प्राचीन समय में देवी शक्ति का अवतार सती के रूप में हुआ था। वे भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं। एक बार उनके पिता राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में जानबूझकर भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। सती को जब यह ज्ञात हुआ तो वे अपने मायके पहुँच गईं। वहाँ उन्होंने देखा कि सभा में सभी देवता और ऋषि उपस्थित हैं, परंतु उनके पति का न केवल अपमान हुआ है बल्कि कोई उनका सम्मान भी नहीं कर रहा। पति के प्रति हुए इस तिरस्कार को सती सहन न कर सकीं और उन्होंने यज्ञ वेदी पर ही योगाग्नि द्वारा अपने प्राण त्याग दिए।

2. पुनर्जन्म और हिमालय की पुत्री: सती ने त्याग के बाद अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के घर लिया। इस रूप में वे शैलपुत्री नाम से प्रसिद्ध हुईं। कहते हैं कि इस जन्म में उन्होंने गहन तपस्या और कठोर साधना के बाद भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त किया। इसी कारण माँ शैलपुत्री को नवरात्रि के पहले दिन पूजा जाता है और उनकी उपासना से आत्मबल, धैर्य और निष्ठा की प्राप्ति होती है।

3. प्रकृति और शक्ति का स्वरूप: माँ शैलपुत्री को पृथ्वी तत्व का प्रतीक माना जाता है। उनके स्वरूप से यह संदेश मिलता है कि जीवन में स्थिरता, सहनशीलता और अडिग साहस होना आवश्यक है। वे साधकों को यह प्रेरणा देती हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी विश्वास और धैर्य बनाए रखने से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।

शैलपुत्री किसका प्रतीक हैं?

  • पृथ्वी तत्व: स्थिरता, सहनशीलता और जीवन के आधार का प्रतिनिधित्व।
  • वृषभ वाहन: धैर्य, संयम और दृढ़ निश्चय का प्रतीक।
  • त्रिशूल: शक्ति, साहस और बुराई के विनाश का द्योतक।
  • कमल: निर्मलता, भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धता का संकेत।
  • अर्धचंद्र: मन की शांति, संतुलन और सौम्यता का प्रतीक।
  • हिमालय की पुत्री: अडिग साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल की प्रतिमूर्ति।

धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

धार्मिक दृष्टिकोण

  • नवरात्रि की शुरुआत माँ शैलपुत्री की पूजा से होती है, इसलिए इन्हें प्रथम दिन विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है।
  • वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की अर्धांगिनी कहलाती हैं।
  • मान्यता है कि उनकी आराधना करने से पापों का नाश होता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
  • माँ शैलपुत्री शक्ति का मूल स्वरूप हैं, जिनकी कृपा से साधक को मानसिक दृढ़ता और शारीरिक बल प्राप्त होता है।
  • उनकी उपासना से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

  • माँ शैलपुत्री को धरती तत्व का प्रतीक माना जाता है, जो जीवन में स्थिरता और धैर्य का संदेश देता है।
  • उनका स्वरूप साधक को आत्मबल, सहनशीलता और संयम अपनाने की प्रेरणा देता है।
  • ध्यान और साधना के दौरान उनकी आराधना से मन केंद्रित होता है और भक्ति में दृढ़ता आती है।
  • उनका संदेश है कि विपरीत परिस्थितियों में भी विश्वास और साहस बनाए रखना ही सच्ची शक्ति है।
  • उनकी उपासना से साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार होता है।

माता शैलपुत्री की पूजा से मिलने वाले लाभ

1. मानसिक शांति और संतुलन: माँ शैलपुत्री की उपासना से मन में स्थिरता आती है। उनकी कृपा से साधक नकारात्मक विचारों से मुक्त होकर मानसिक शांति का अनुभव करता है। ध्यान और साधना के समय उनका स्मरण करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में संतुलन बना रहता है।

2. धैर्य और साहस की प्राप्ति: माँ शैलपुत्री वृषभ पर सवार रहती हैं, जो धैर्य और संयम का प्रतीक है। उनकी आराधना से व्यक्ति में कठिन परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता उत्पन्न होती है। पूजा करने से मनुष्य अपने जीवन की चुनौतियों को साहस और दृढ़ निश्चय के साथ पार कर पाता है।

3. पारिवारिक सुख-समृद्धि: माँ शैलपुत्री को गृहस्थ जीवन की संरक्षिका माना गया है। उनकी पूजा करने से परिवार में आपसी प्रेम, सौहार्द और सुख-समृद्धि बनी रहती है। उनके आशीर्वाद से परिवार में कलह और तनाव दूर होते हैं और घर-आंगन में सकारात्मक वातावरण स्थापित होता है।

4. आध्यात्मिक उन्नति: ध्यान और साधना के मार्ग पर बढ़ने वाले साधकों के लिए माँ शैलपुत्री की उपासना विशेष फलदायी है। वे साधक के मन को एकाग्र करती हैं और आध्यात्मिक प्रगति में सहायक बनती हैं। उनकी कृपा से साधक के भीतर भक्ति की भावना और ईश्वर के प्रति समर्पण गहरा होता है।

5. जीवन में स्थिरता: माँ शैलपुत्री को पृथ्वी तत्व का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा करने से जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है। अस्थिर मन और विचलित विचार शांत होकर सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ते हैं। यह स्थिरता व्यक्ति को निर्णय लेने में भी समर्थ बनाती है।

नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री पूजा विधि

1. पूजा स्थल की शुद्धि और तैयारी: नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले घर और पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ किया जाता है। चौकी या वेदी पर लाल या पीला स्वच्छ कपड़ा बिछाकर माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है। पूजा स्थल को फूलों, दीपक और धूप से सजाकर पवित्र वातावरण बनाया जाता है।

2. कलश स्थापना: कलश स्थापना नवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है।

  • एक मिट्टी या तांबे के कलश में गंगाजल भरें।
  • उसमें सुपारी, सिक्का और आम के पत्ते रखें।
  • ऊपर नारियल रखकर उसे लाल कपड़े से लपेटें।
  • यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसकी स्थापना के बाद नवरात्रि पूजा की शुरुआत होती है।

3. संकल्प और आह्वान: पूजा शुरू करने से पहले साधक संकल्प लेता है कि वह पूरे नियम और श्रद्धा से नवरात्रि का व्रत और पूजन करेगा। इसके बाद माँ शैलपुत्री का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है और उन्हें पूजा में आमंत्रित किया जाता है।

4. पूजन सामग्री अर्पण

  • माँ शैलपुत्री को लाल या पीले रंग के फूल अर्पित किए जाते हैं।
  • अक्षत (चावल), रोली, कुमकुम और सिंदूर अर्पण करें।
  • उन्हें दुर्वा, फल और मिठाई चढ़ाई जाती है।
  • घी का बना दिया बहुत शुभ माना जाता है।
  • भक्त अपनी सामर्थ्य अनुसार दूध, घी और शहद का भोग भी लगाते हैं।

5. मंत्र जाप और स्तुति: माँ शैलपुत्री की आराधना करते समय उनके बीज मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी होता है। साथ ही दुर्गा सप्तशती, देवी कवच या नवरात्रि पाठ का पाठ भी किया जा सकता है। मंत्र-जाप करते समय मन को एकाग्र और शांत रखना आवश्यक है।

6. आरती और प्रार्थना: पूजन के अंत में दीप और कपूर जलाकर आरती की जाती है। भक्त माँ से जीवन में सुख-समृद्धि, धैर्य, साहस और सकारात्मक ऊर्जा की प्रार्थना करता है। आरती के बाद प्रसाद सभी घरवालों और भक्तों में बांटा जाता है।

निष्कर्ष

माँ शैलपुत्री की पूजा अगर सच्चे मन और नियमों के साथ की जाए, तो भक्त को मन की शांति, परिवार में सुख-समृद्धि, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक प्रगति का आशीर्वाद मिलता है।

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Published by Sri Mandir·September 26, 2025

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