नवग्रहों के मंत्र

नवग्रहों के मंत्र

पढ़ें नवग्रहों के मंत्र और उनके लाभ


नवग्रह मंत्र और अर्थ

ज्योतिषियों के मुताबिक, जब ग्रह कमजोर होते हैं, तो व्यक्ति को उससे संबंधित बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं। वहीं जब ग्रह मजबूत होते हैं, तो जातकों को उसका प्रत्यक्ष लाभ भी मिलता है।

ग्रहों को मजबूत बनाने के लिए हम बता रहे हैं कुछ मंत्र और जाप, जो फलकारक हो सकते हैं। सभी ग्रहों की अनुकूलता और निरोगी काया के लिए आइए जानते हैं किस नवग्रह मंत्र का जप करें-

लेख में-

  1. सूर्य मंत्र और अर्थ।
  2. चन्द्र मंत्र और अर्थ।
  3. मंगल मंत्र और अर्थ।
  4. बुध मंत्र और अर्थ।
  5. गुरु मंत्र और अर्थ।
  6. शुक्र मंत्र और अर्थ।
  7. शनि मंत्र और अर्थ।
  8. राहु मंत्र और अर्थ।
  9. केतु मंत्र और अर्थ।

1. सूर्य मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः।
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च॥
हिरण्येन सविता रक्षेन देवो यति भुवनानि पश्यन्।
सूर्यमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे सूर्य देव ! आप ऊषाकाल की रश्मियों रूपी स्वर्णिम रथ पर आरूढ़ होकर घने अंधकार युक्त अंतरिक्ष पथ से भ्रमण करते हुए, देवों और मनुष्यों को अपने-अपने वर्तमान कार्य-व्यापार में लगाते हुए तथा संपूर्ण लोकों को निरीक्षण करते हुए अर्थात् प्रकाशित करते हुए आवागमन करते हैं।

2. चन्द्र मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः।
इमं देवा असपत्न ग्वं सुवध्वं महते क्षत्राय ,
महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रिस्येन्द्रियाय।
इममममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा ,
सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ग्वं राजा।
चन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे चन्द्र देव अथवा हे देवगणों! आप हम ब्राह्मणों के राजा आह्लादक चन्द्रमा के समान अमुक पिता के पुत्र, एवं अमुक माता के इस पुत्र को, महान क्षात्रवल के संपादक के लिए, महान राज्य पद के लिए, श्रेष्ठ जनराज्य के लिए, इन्द्र देव के समान ऐश्वर्ययुक्त करने के लिए एवं प्रजापालन के लिए, शत्रु रहित राजा (का अभिषेक) कीजिए।

3. मंगल मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ हूं श्रीं भौमाय नमः।
अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्।
अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति,
मंगलमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

अर्थ:
यह अग्निदेव के समान रक्तवर्ण हे भौम! आप बैल के कंधे के समान ऊँचे एवं सबसे ऊपर द्युलोक में विद्यमान होकर जीवन शक्ति का संचार करते हुए तथा पृथिवी का पालन करते हुए जलों में भी रस रूप में जीवन शक्ति का संचार करते हैं।

4. बुध मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।
उद्बुध्यास्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामायं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत,
बुधमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे अग्नि रूप में बुधदेव! आप उत्तमरीति से प्रज्वलित होकर चैतन्यता प्राप्त करें और आप अभीष्ट पूर्ति चाहने वाले इस यजमान की सत् आकांक्षाओं को पूर्णकर उसकी चैतन्यता को उत्पन्न करें। समग्र देवता और (देवताओं के लिए कार्य करने वाला) यजमान एक साथ रहते हुए इस लोक और उत्तम स्थान स्वर्ग लोक में चिरकाल तक अधिष्ठित रहें।

5. गुरु मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नमः।
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्,
गुरुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे बृहस्पते! पूजनीय! आप अपनी जिस शक्ति से सभी लोगों में आदित्य के समान तेजस्वी एवं सक्रिय होकर अधिक प्रकाशित होते हैं। उसी अपनी शक्ति से प्रकाशित होकर, सत्य से भली भाँति उत्पन्न हे बृहस्पति देव! आप, हम सब मनुष्यों में आश्चर्यजनक धन धारण कीजिये अर्थात् प्रदान कीजिये।

6. शुक्र मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ हरिंग श्रृंग शुक्राय नमः।
अन्नात्परिसुतो रसं ब्रह्मणा,
व्यपिवत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः,
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ग्वं,
शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोमृतं मधु।
शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे शुक्रदेव! वेदों के ज्ञाता ब्राह्मणों के साथ प्रजापति ने पूर्ण रूप से पके हुए अन्न के रस से, सोम रस के समान, क्षात्र बल को धारण करने वाला, दूध का पान किया, उक्त परम सत्य से लौकिक सत्य प्रकट है। यह सोम रूपी अन्न रस इंद्रियों की रक्षा के हेतु है। सभी दोषों का निवारण करने वाला है। इंद्रियों को सामर्थ्य देने वाला है एवं ऐश्वर्य युक्त पुरुष को शुक्र (वीर्य, बल) प्रदायक है और दुग्ध आदि मधुर पदार्थों को तथा अमृतोपम आनंद को प्रदान करता है।

7. शनि मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।
शं नो देवीरभिष्ठय आपो भवन्तु प्रीतये।
क्षं योरभिस्रवन्तु नः
शनिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

अर्थ:
हे शनिदेव! अभीष्ट फल देने के लिए तथा पीकर तृप्त करने के लिए, दिव्य (उत्तम) गुणयुक्त आपका जल हमारे लिए कल्याणकारी (सुखकर) हो। जो हमारे लिए (रोगों का शमन कर तथा अनिष्टों को दूर कर) सुखों की सब प्रकार से बरसा करे।

8. राहु मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं राहवे नम।
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा।
कया शचिष्ठ्या वृता,
राहुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

अर्थ:
सदा वृद्धि करने वाले हे राहुदेव! आप किसी अद्भुत शक्ति से हमारी रक्षा करने वाले हो जाइये एवं मित्र हो जाइये तथा किसी अत्यन्त निकट वर्तमान उत्तम कार्य में लगाइये।

9. केतु मंत्र:

बीज मंत्र:

ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः।
केतुं कृण्वन्त्रकेतवे पेशो मर्या अपेशसे,
समुषद्भिरजायथाः।
केतुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

अर्थ:
सूर्य के समान हे केतु! आप अज्ञानी पुरुषों को सद्ज्ञान और रूपरहित लोगों को सुन्दर स्वरूप प्रदान करते हुए ऊषा के साथ समान रूप से उत्पन्न होते हैं।

इस प्रकार के अनमोल मंत्रों जानकारी के लिए देखें श्री मंदिर साहित्य।

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