भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई है! जानें इस दिव्य यात्रा की तिथि, मार्ग, महत्व और जुड़ें शुभकामनाओं के साथ इस अद्भुत उत्सव में।
रथ यात्रा का संबंध श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में भी वर्णित है। पुरी की रथ यात्रा को ‘धरती पर भगवान की यात्रा’ कहा जाता है। यह एकमात्र ऐसा अवसर है जब स्वयं भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मंदिर से बाहर भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें अपना आशीर्वाद देते हैं। भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा ‘गुंडिचा मंदिर’ तक जाती है, जिसे भगवान की मौसी का घर कहा जाता है। वहाँ सात दिन ठहरने के बाद वे फिर से अपने मूल स्थान श्री मंदिर लौटते हैं, जिसे ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है।
हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल द्वितीया को ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है, जो आस्था, भक्ति और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। यह यात्रा न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लाखों श्रद्धालु इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने और रथ खींचने के लिए पुरी पहुंचते हैं।
विश्व प्रसिद्ध उत्सव: यह विश्व की सबसे बड़ी रथ यात्राओं में से एक है, जिसे देखने हर साल भारत ही नहीं, विदेशों से भी लाखों लोग आते हैं।
रथ खींचने का सौभाग्य: श्रद्धालु मानते हैं कि भगवान का रथ खींचने से पुण्य प्राप्त होता है और सारे पाप कट जाते हैं।
राजा भी सेवक: पुरी का गजपति राजा खुद सोने की झाड़ू (छेरा पहरा) से रथ और मार्ग को साफ करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान के सामने सभी समान हैं।
अद्वितीय मूर्ति परंपरा: रथ यात्रा के समय भगवान की जो मूर्तियाँ रथ पर रखी जाती हैं, वे लकड़ी की बनी होती हैं और हर 12-19 साल में इन्हें पूरी तरह बदला जाता है, जिसे ‘नवकलेवर’ कहते हैं।
रथ यात्रा: भक्त और भगवान के बीच की सबसे सुंदर यात्रा।
भक्ति का महासागर, जहाँ आस्था रथ खींचती है।
प्रभु जगन्नाथ की शाही सवारी: एक अलौकिक अनुभव।
करोड़ों दिलों की धड़कन, पुरी की रथ यात्रा।
रंगों, जयकारों और असीम श्रद्धा का संगम।
जब भगवान स्वयं मिलने आएं भक्तों से।
पुरी की सड़कों पर आस्था का सैलाब।
रथ यात्रा: दिव्य प्रेम की एक अनूठी गाथा।
जगन्नाथ धाम की जीवंत परंपरा।
अनोखी मूर्तियों की अनूठी यात्रा।
हर कदम पर भक्ति, हर चेहरे पर खुशी।
मोक्ष की राह, रथ के हर पहिए में।
मानव और ईश्वर के मिलन का पर्व।
जय जगन्नाथ! एक उद्घोष, करोड़ों भावनाएं।
युगों से चली आ रही एक अमर गाथा।
पुरी: जहाँ हर भक्त है कान्हा का सखा।
रथ पर विराजे त्रिभुवन के स्वामी।
रथ यात्रा: आत्मा को शुद्ध करने का महोत्सव।
भगवान के घर वापसी का भव्य स्वागत।
रथ यात्रा – जहां धरती पर स्वर्ग उतरता है।
रथ यात्रा: एक परंपरा, एक चेतना, एक उत्सव।
हर बार रथ यात्रा में नया अनुभव, नया उत्साह।
जब सुभद्रा, बलभद्र और जगन्नाथ निकलते हैं – आकाश भी झूम उठता है।
जब श्रद्धा का रथ चलता है, तो सारे द्वार खुल जाते हैं।
एक दिन जब भगवान रथ पर निकलते हैं, तो सारा संसार रुक जाता है।
भगवान खुद चलकर भक्तों के बीच आते हैं – यही है रथ यात्रा का चमत्कार।
यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, आत्मा का जागरण है।
हर साल पुरी बुलाता है – भगवान जगन्नाथ के दर्शन का न्योता देता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा – एक बार जीवन में जरूर अनुभव करें।
पुरी की गलियों में जब रथ निकलता है, तो भक्ति की बयार बहती है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समर्पण, समानता और संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि ईश्वर हर किसी तक पहुँचते हैं, चाहे वह राजा हो या रंक। यही समभाव और श्रद्धा इसे इतना खास और दिव्य बनाते हैं।
अगर आप भी जीवन में एक बार इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं, तो यह अनुभव आत्मिक शांति और आनंद से भर देगा।
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