तिरुपति बालाजी स्वरूप भगवान वेंकटेश की भक्ति के लिए पढ़ें श्रद्धा और आस्था से पूर्ण वेंकटेश चालीसा। इसके नित्य पाठ से जीवन में आता है सौभाग्य और मानसिक शांति।
वेंकटेश चालीसा भगवान वेंकटेश्वर या तिरुपति बालाजी को समर्पित एक भक्ति-ग्रंथ है, जिसमें 40 चौपाइयों (पदों) और एक दोहे के माध्यम से भगवान वेंकटेश्वर की महिमा, उनके दिव्य स्वरूप, चमत्कार और भक्तों पर की गई कृपा का बखान किया गया है। यह चालीसा भगवान वेंकटेश्वर की स्तुति के लिए गाई जाती है, जो श्रद्धालुओं को उनकी भक्ति, शांति, समृद्धि और ऐश्वर्य का अनुभव कराती है।
भगवान वेंकटेश्वर की महिमा का गान करने वाली वेंकटेश चालीसा न केवल धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि इसका नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ साधक के जीवन में कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव लाने वाला माना जाता है। इस चालीसा के जाप से व्यक्ति को मानसिक शांति, आंतरिक बल और मजबूत आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, धन-वैभव, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक सौहार्द और सामाजिक सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
संतान, शिक्षा, व्यवसाय, रोजगार या गृहस्थ जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान में भी वेंकटेश चालीसा का पाठ सहायक माना गया है। भगवान वेंकटेश्वर अपनी कृपा-दृष्टि से भक्तों के समस्त संकट, विघ्न और आर्थिक परेशानियाँ दूर करते हैं, जिससे जीवन में सुख, संतोष और उन्नति का संचार होता है।
मनोकामना पूर्ति: श्रद्धापूर्वक पाठ करने से जीवन की इच्छा-पूरक साधनाएँ साधी जाती हैं।
आर्थिक समृद्धि: नियमित जाप से आय-धन में बढ़ोतरी होती है और आर्थिक चिंता कम होती है।
आरोग्य लाभ: चालीसा के स्तोत्रों से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार का अनुभव होता है।
विरोधी अवरोधनाश: नकारात्मक शक्तियाँ और बाधाएँ दूर होकर जीवन सरल बनता है।
परिवारिक सौहार्द: घर में मेल-जोल और आपसी समझ बढ़ती है, पारिवारिक वातावरण शांत होता है।
करियर उन्नति: गुरु वेंकटेश्वर की कृपा से नौकरी या व्यवसाय में तरक्की के मार्ग खुलते हैं।
मानसिक संतुलन: मंत्रों के उच्चारण से तनाव घटता है और मन को स्थिरता मिलती है।
आध्यात्मिक विकास: निरंतर पाठ आत्मशुद्धि कर आत्मा को ऊँची दिव्यता का अनुभव कराता है।
॥ श्रीपद्मावती सहित श्रीनिवास परंब्रह्मणे नम:॥
दोहा
रामानुज पदकमल का,
मन में धर कर ध्यान।
श्रीनिवास भगवान का,
करें विमल गुण गान ।।
तिरुपति की महिमा बड़ी,
गाते वेद-पुरान ।
कलियुग में प्रत्यक्ष हैं,
वेंकटेश भगवान ।।
चौपाई
जय श्रीवेंकटेश करुणा कर ।
श्रीनिवास स्वामी सुख सागर ।।
जय जय तिरुपति धाम निवासी ।
अखिल लोक स्वामी अविनाशी ।।
जय श्रीवेंकटेश भगवाना ।
करुणा सागर कृपा निधाना ।।
सप्तगिरि शेषाचल वासी ।
तिरुपति पर्वत शिखर निवासी ।।
श्री दर्शन महिमा अति भारी ।
आते नित लाखों नर नारी ।।
देव ऋषि गंधर्व जगाते ।
सुप्रभात सब मिल कर गाते ।।
सकल सृष्टि के प्राणी आवें ।
सुप्रभात शुभ दर्शन पावें ।।
विश्वरूप दर्शन सुखकारी ।
श्रीविग्रह की शोभा भारी ।।
वेद पुराण शास्त्र यश गावें ।
अति दुर्लभ दर्शन बतलावें ।।
जिन पर प्रभु कृपा करते हैं ।
उनको यह दर्शन मिलते हैं ।।
महा विष्णु श्रीमन्नारायण ।
भक्तों के कारज सारायण ।।
शेषाचल पर सदा विराजे ।
शंख चक्र कर सुन्दर साजे ।।
अभय हस्त की मुद्रा प्यारी ।
सफल कामना करती सारी ।।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।
शरणागत रक्षक प्रतिपाला ।।
श्रीवैकुण्ठ लोक निज तज कर ।
श्रीस्वामी पुष्करिणी तट पर ।।
भक्त कार्य करने को आये ।
कलियुग में प्रत्यक्ष कहाये ।।
स्वामी तीर्थ पुण्यप्रद पावन ।
स्नान मात्र सब पाप नशावन ।।
जो इसमें करते हैं स्नान ।
उनको मिलता पुण्य महान ।।
प्रथम यहां दर्शन अधिकारी ।
श्रीवराह स्वामी सुखकारी ।।
पहले दर्शन इनका करके ।
भू-वराह को प्रथम सुमिर के ।।
श्रीवेंकटेश चरण चित धरना ।
श्रीनिवास के दर्शन करना ।।
वेंकटेश सम इस कलियुग में ।
अन्य देव नहीं इस जग में ।।
पहले भी नहीं हुआ कहीं है ।
आगे हो यह सत्य नहीं है ।।
‘ओऽम्’ नम: श्रीवेंकटबाला ।
भक्तजनों के तुम रखवाला ।।
भक्त जहां अगणित नित आते ।
सोना चांदी नकद चढ़ाते ।।
श्रद्धा से कर हुण्डी सेवा ।
सेवा से पाते सब मेवा।।
श्रीनिवास की सुन्दर मूर्ति ।
मनोकामना करती पूर्ति ।।
दर्शन कर हर्षित सब तन मन ।
सुन्दर सुखद सुशोभित दर्शन ।।
दिव्य मधुर सुन्दर प्रसाद है ।
‘लड्डू’ अमृत दिव्य स्वाद है ।।
महाप्रसाद दिव्य जो पाते ।
उनके पाप सभी कट जाते ।।
महिमा अति प्रसाद की भारी ।
मिटती भव बाधायें सारी ।।
केशर-चंदन युत चरणामृत ।
दिव्य सुगन्धित प्रभु का तीरथ ।।
तीर्थ-प्रसाद भक्त जो पाते ।
आवागमन मुक्त हो जाते ।।
‘चौरासी’ में फिर नहीं आते।
जो प्रसाद ‘लड्डू’ का पाते ।।
सुख संपत्ति वांछित फल पावे ।
फिर वैकुण्ठ लोक में जावे ।।
‘वें’ का अर्थ पाप बतलाया ।
‘कट’ का अर्थ काट दे माया ।।
माया पाप काटने वाला ।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।।
श्रीनिवास विष्णु अवतारा ।
महिमा जानत है जग सारा ।।
जो यह श्री चालीसा गावे ।
सकल पदारथ जग के पावे ।।
शब्द पुष्प श्री चरण चढ़ाकर ।
करे प्रार्थना भक्त ‘गदाधर’ ।।
दोहा
जय जय श्रीतिरुपति-पति श्रीनिवास भगवान ।
करो सिद्ध सब कामना स्वामी कृपा निधान ।।
उत्तम मुहूर्त: गुरुवार की प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में पाठ करने से चालीसा का प्रभाव सबसे अधिक होता है।
स्वच्छ वातावरण: स्नानादि करके व पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखकर ही पाठ आरंभ करें।
मूर्ति/चित्र पूजन: सबसे पहले वेंकटेश्वरजी की मूर्ति या चित्र पर दीप, धूप और पुष्प अर्पित करें।
प्रार्थना-संकल्प: पाठ आरंभ से पूर्व हाथ जोड़कर अपने उद्देश्य की पूर्ण श्रद्धा से संकल्प लें।
दोहे का उच्चारण: चालीसा के पहले दोहे को भावपूर्ण स्वर में बोलकर मन एकाग्र करें।
चौपाइयों का पाठ: 40 चौपाइयां बिना अवरोध, शुद्ध उच्चारण एवं भावबोध के साथ पढ़ें।
जपमाला उपयोग: 108 मनकों वाली माला से पाठ की गिनती और लय नियंत्रित रखें।
ध्यान-मनन: पाठ के दौरान भगवान वेंकटेश्वर के रूप, लीला और गुणों का चिंतन करे।
समापन विधि: अंत में आरती-कीर्तन या भजन कर प्रसाद अर्पित कर धन्यवाद व्यक्त करें।
पापों की शुद्धि: नियमित पाठ से अतीत के कर्मों के दोषों से मुक्ति मिलती है।
वैवाहिक सौभाग्य: विवाहितों के संबंधों में स्थिरता और खुशहाली आती है।
यात्रा सुरक्षा: तीर्थयात्रा या यात्राओं के दौरान दैवीय संरक्षण प्राप्त होता है।
रचनात्मक ऊर्जा: कला, विज्ञान या व्यवसाय में नवीन विचार और प्रेरणा मिलती है।
दान पुण्य वृद्धि: सेवा और दान-दान में बढ़ोतरी से सामाजिक कल्याण होता है।
भावनात्मक संतुलन: मानसिक उतार-चढ़ाव में स्थिरता और आत्म-नियंत्रण स्थापित होता है।
नैतिक दृढ़ता: सत्य, धर्म और नियमों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता मजबूत होती है।
मोक्षप्राप्ति मार्ग: अंततः आत्मा को मुक्ति के उच्चतर मार्ग पर अग्रसरित करता है।
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