चंद्र देव चालीसा
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चंद्र देव चालीसा

मन और भावनाओं के स्वामी चंद्र देव की कृपा के लिए करें श्रद्धा से चंद्र देव चालीसा का पाठ। इससे दूर होती हैं मानसिक बाधाएं और जीवन में आता है संतुलन और सुख।

चंद्र देव चालीसा के बारे में

धार्मिक शास्त्रों में नवग्रहों में चंद्र देव की पूजा अत्यंत पुण्यदायी मानी गई है। ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का कुंडली में शुभ होना जरूरी है। यदि यह कमजोर हो तो परेशानियां बढ़ती हैं। ऐसे में चंद्र देव की चालीसा का नियमित जप करने से उनकी विशेष बरसती है। तो चलिए जानें चंद्र देव चालीसा के बारे में।

चंद्र देव चालीसा क्या है?

मान्यता अनुसार, सोमवार का दिन देवो के देव महादेव को समर्पित होता है। वहीं, कम लोगों को पता होगा की सोमवार का दिन नवग्रह में से एक औऱ शीतलता के प्रतीक चंद्र देव को भी समर्पित होता है। चंद्र देव की चालीसा में चंद्र देवी की सुंदर स्तुति है जो चंद्र देव की महिमा का वर्णन करती है। चंद्र देवी की चालीस में चंद्र देव की प्रशंसा औऱ गुणगान को विस्तार बतलाया गया है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से न केवल चंद्रमा मजबूत होते हैं, बल्कि चंद्र देव साधक पर अति प्रसन्न होकर अपनी विशेष कृपा बरसाते हैं। चंद्र देव की पूजा के समय चंद्र देव की चालीसा करना फलदायी होता है।

चंद्र देव चालीसा का पाठ क्यों करें?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्र देव को मन और मस्तिष्क का मुख्य कारक माना जाता है। कुंडली में उनका शुभ स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यदि चंद्रमा अशुभ हो तो व्यक्ति को मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में चंद्र देव की चालीसा का नियमित जाप करने से चंद्र देव की विशेष कृपा मिलती है। इसे करने से चंद्र दोष का निवारण होता है। इसके अलावा, माना जाता है कि चंद्र देव की कृपा से साधक को धन-बल, बुद्धि-सिद्धि और भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है। जो व्यक्ति मानसिक तनाव, असंतुलन या बार-बार असफलताओं से जूझ रहा हो, उसके लिए चंद्र चालीसा का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है। यह चित्त को शांत करता है और आत्मबल को बढ़ाता है। ऐसे में सुखमय और सफल जीवन के लिए चंद्र देव की आराधना स्वरूप चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

चंद्र देव चालीसा

।। दोहा ।।

शीश नवा अरिहंत को,

सिद्धन करुं प्रणाम।

उपाध्याय आचार्य का,

ले सुखकारी नाम।।

सर्व साधु और सरस्वती,

जिन मन्दिर सुखकर।

चंद्रपूरी के चन्द्र को,

मन मन्दिर में धार।।

जय जय स्वामी श्री जिन चंदा,

तुमको निरख भये आनंदा।

तुम ही प्रभु देवन के देवा,

करुं तुम्हारे पद कि सेवा।।

वेष दिगंबर कहलाता है,

सब जग के मन भाता है।

नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी,

मोहनि मूर्ति कितनी प्यारी।।

तीन लोक की बाते जानो,

तीन काल क्षण में पहचानो।

नाम तुम्हारा कितना प्यारा,

भूत प्रेत सब करे निवारा।।

तुम जग में सर्वज्ञ कहलाओ,

अष्टम तीर्थकर कहलाओ।।

महासेन जो पिता तिहारे,

लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।

तज वैजंत विमान सिधाये,

लक्ष्मणा के उर मे आये।

पोष वदी एकादश नामी,

जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।

मुनि समंतभद्र थे स्वामी,

उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।

वैष्णव धर्म जभी अपनाया,

अपने को पंडित कहवाया।।

कहा राव से बात बताऊं,

महादेव को भोग खिलाऊं।

प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे,

उनको मुनिजन छिपाकर खावे।।

इसी तरह निज रोग भगाया,

बन गई कंचन जैसी काया।

एक लड़के ने पता चलाया,

फौरन राजा को बताया।।

तब राजन फरमाया मुनि जी को,

नमन करो शिवपिंडी को।

राजा से तब मुनि जी बोले,

नमस्कार पिंडी नही झेले।।

राजा ने जंजीर म़ंगाई,

उस शिवपिंडी में बंधवाई।

मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया,

पिंडी फटी अचंभा छाया।।

चंद्रप्रभ की मूर्ति दिखाई,

सब ने जय-जयकार मनाई।

नगर फिरोजाबाद कहाये,

पास नगर चंदवार बताये।।

चन्द्रसैन राजा कहलाया,

उस पर दुश्मन चढ़कर आया।

राव तुम्हारी स्तुति गई,

सब फौजो को मार भगाई।।

दुश्मन को मालूम हो जावे,

नगर घेरने फिर आ जावे।

प्रतिमा जमना में पधराई,

नगर छोड़कर परजा धाई।।

बहुत समय ही बीता है की,

एक यती को सपना देखा।

बड़े जतन से प्रतिमा पाई,

मंदिर में लाकर पधराई।।

वैष्णवों ने चाल चलाई,

प्रतिमा लक्ष्मण की बताई।

अब तो जैनी जन घबरावे,

चंद्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।

चिन्ह चंद्रमा का बताया,

तब स्वामी तुमको था पाया।

सोनागिरि में सौ मंदिर है,

एक बढ़कर एक सुंदर हैं।।

समवशरण था यहां पर आया,

चंद्र प्रभू उपदेश सुनाया।

चंद्र प्रभू का मन्दिर भारी,

जिसको पूजे सब नर और नारी।।

सात हाथ की मूर्ति बतलाई,

लाल रंग प्रतिमा बताई।

मंदिर और बहुत बताये,

शोभा वरणत पार न पाए।।

पार करो मेरी यह नैय्या,

तुम बिन कोई नहीं खिवैया।

प्रभू मैं तुमसे कुछ नहिं चाहूं,

भव-भव में दर्शन पाऊं।।

मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा,

करो नाथ अब तो निस्तारा।

स्वामी आप दया दिखाओ,

चंद्रदास को चंद्र बनाओ।।

सोरठ

नित चालीसहिं बार,

पाठ करे चालीस दिन।

खेय सुगन्ध अपार,

सोनागिर में आय के।।

होेए कुबेर समान,

जन्म दरिद्री होए जो।

जिसके नहीं सन्तान,

नाम वंश जग में चले।।

पाठ की विधि और नियम

  • चंद्र देव चालीसा का पाठ नियमपूर्वक करें ताकि अधिक लाभ मिल सके।
  • यह पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन सोमवार को इसका विशेष फल मिलता है।
  • सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां चंद्र देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • देसी घी का दीपक जलाएं और प्रभु के सामने रखें।
  • चंद्र देव को फूल, मिठाई, चंदन और अक्षत अर्पित करें।
  • इसके बाद मन शांत करके श्रद्धापूर्वक चंद्र देव चालीसा का पाठ करें।
  • चालीसा के बाद चंद्र मंत्र का जाप करें।
  • पाठ के बाद आरती, भजन और कीर्तन गाएं।

चंद्र देव चालीसा के लाभ

चंद्र देव चालीसा का नियमित पाठ करने से अनेक लाभ होते हैं। इसके मुख्य लाभ इस प्रकार हैं......

  • चंद्र दोष से मुक्ति: चंद्र देव चालीसा का पाठ करने से कुंडली में होने वाले चंद्रमा दोष से मुक्ति मिलती है।

  • सफलता में वृद्धि: चंद्र देव चालीसा का पाठ न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में समृद्धि और सफलता के द्वार भी खोलता है।

  • बरसती है भोलेनाथ की कृपा: चंद्र देव का पाठ करने से साधक को भोलेनाथ की भी विशेष कृपा मिलती है।

  • मां के स्वास्थ्य में सुधार: चंद्र देव की पूजा और चालीसा के पाठ से मां का स्वास्थ्य संतुलित रहता है।

  • मानसिक शांति की प्राप्ति: चालीसा के पाठ से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।

  • धन औऱ सौभाग्य का आगमन: चंद्र देव का पाठ करने से की धन-धान्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

  • सकारात्मक ऊर्जा का संचार: चालीसा को पढ़ने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जिससे आंतरिक संतुलन बना रहता है। इस प्रकार चंद्र देव की चालीसा का नियमित और श्रद्धाभाव से पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

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Published by Sri Mandir·September 19, 2025

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